
अंबर का शृंगार तुम्हीं से, श्वेत स्वच्छ अकलंक।
#गीत
रंग भरे सपनों की कलशी, सजी तारिका नेक,
ध्रुवक साधना छंद सृजन के,भाव भरे अतिरेक।
धवल चँद्रिका पूर्ण चंद्र की, अनुपम रूप मयंक,
अंबर का शृंगार तुम्हीं से, श्वेत स्वच्छ अकलंक।
अनुपम रूप मयंक……….
बिछा रही वह पलक पाँवड़े, देखे बारंबार,
थाल सजाए ज्योतित; रमणी, देती अर्घ्य-उतार।
दर्शन दुर्लभ तीज-चौथ के, साधक उत्कट बंक,
उदित हुआ नीलाभ यथावत,पंकज खिलता पंक।
अनुपम रूप मयंक……….
झरे बूँद रिमझिम तुषार के, सुखदा कांति विशेष,
अमिय कमंडल लेकर आये, मिटी तृषा अनिमेष।
शुभ्र वेश उन्मेष देखकर, चातक लगे सशंक,
गर्वित होती उर्मिल लहरे, लेकर तुमको अंक।
अनुपम रूप मयंक……….
साज सरस से छेड़ रागिनी, रीझे शारद विज्ञ,
जगा रही ज्यों अलख ज्योत्स्ना,अनुरागी अनभिज्ञ।
वश में अपने कर लेती जो, राजा हो या रंक,
लिए अनोखी चंचु चातुरी, हुआ पराजित कंक।
अनुपम रूप मयंक……….
———-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
