• गीतिका

    भोर की लाली

    आधार छंद द्विमनोरम मापनी / शिल्प विधान– 2122,2122,2122,2122 गीतिका गीत मधुरिम रागिनी से पथ बनाते हम चलेंगे । मुश्किलों में साथ अपनों का निभाते हम चलेंगे । शीत कंपित हर दिशा को दे चुनौती रश्मियाँ ज्यों, रवि किरण सतरंग सरसिज को खिलाते हम चलेंगे । भोर की लाली मनोहर काव्य मय लय छंद संगम, आचमन कर हिय सरस हो गुनगुनाते हम चलेंगें । नाव माँझी ले चलो मँझधार से लेकर किनारे, हो खिवैया श्याम – रघुवर गीत गाते हम चलेंगे । प्रेम ये अनमोल बंधन भाव से समृद्ध अर्पण, स्नेहमय विस्तार जीवन ये सजाते हम चलेंगे । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    काल चक्र

    छंद लावणी/ताटंक मात्रा = 30 16,14, पर यति समांत – आयी पदांत है गीतिका…… काल काल ये काल चक्र है,ये लघु दीर्घ न ढायी है। जूझ रहे हम सभी समय की,चाल समझ कब आयी है । बीते पल की यादें अपनी,चिंतन खोने – पाने का, अगम अनागत अंत नहीं कुछ,बातें जहाँ समायी है । शुभ चिंतन में अविराम रहें,होनी हो कर ही रहती, संघर्ष रहेगा जीवन भर,अंत भला हो भायी है । बुनते ताने बाने जो हम,भरम जाल में फाँसे खुद को, करनी का फल वही मिलेगा,सुखदा या दुखदायी है। त्याग प्रेम है जीवन अर्पण,लघुता पीडा़ है मन की , करुणा मोती अंतस जिसके,खुशी वहीं मुस्कायी है । डॉ. प्रेमलता…

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