“पथ प्रेम पर सतत”

आधार छन्द- दिग्वधू (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- “221 2122 221 212”
सामान्त- “अना”, पदान्त- “करे”
“गीतिका”
अभिमान दूर कर मन नितअर्चना करे ।
सुखदा सरस सुधारस सत सर्जना करे ।

संग्राम की डगर को चुनते सदा वही,
जो द्वेष-राग छल-बल की कामना करे ।

अर्पण करें वही हम हो देश हित सही,
आधार सत्य ले जो अभ्यर्थना करे ।

विश्वास आपसी हो रिश्ते बनें सुखद,
तज दर्प को मिलें जब सामना करे ।

हो प्यास क्यों अधूरी गुरुज्ञान के बिना,
सतज्ञान हित सफलतम साधना करे ।

भावुक हृदय हमारा पथ प्रेम पर सतत,
लेखन सधे विकल मन संकल्पना करे ।
————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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