• #गीत

    “मावस भरे अँजोर”

    #गीत? भाव भरे करसंपुट दीपक, दीप्त करे चहुँओर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । थाल सजाकर फूल नारियल, सुरभित कर परिवेश। पूजा करती अँगना अँगना, लक्ष्मी सह प्रथमेश । हाथ जोड़ सब शीष नवाते,ज्योति जले प्रतिछोर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । दान भोग औ नाश यही हो, सत्य सही संकल्प । सार्थक हो निज धर्म-कर्म से, क्षुधित न कोई अल्प। राम राज की पुनः कल्पना, लाए प्रतिपल भोर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । लता प्रेम की शाख-शाख पर, बढ़ती जाये मीत। वर्ष वर्ष पर दीप दिवाली, झिलमिल गाये गीत । लड़ियों औ फुलझड़ियों से चहुँ,धूम मचे प्रिय शोर ।…

  • गीतिका

    राहें बनाती है।

    मापनी – 1222 1222 1222 1222 समान्त – आती पदांत – है गीतिका नयन से दूर हो जो तुम,उदासी यह न जाती है । सुखद यादें जहाँ हर पल,हमें यों ही सताती है । तड़पना यह जरूरी है,सही अहसास का होना, निकट हों फासले मन में,करीबी यह न भाती है । चलो अच्छा हुआ अपने,पराये का पता होना, दुखों में साथ जो अपने,कहानी वह सुहाती है । भटकते भाव मधुरिम जो,उबरते डूब कर ही हम, मुझे तुमसे तुम्हें मुझसे, यही हमको मिलाती है बनाकर राह बढ़ते खुद,सहज पाते स्वयं को हम, जहाँ बंधन लगे रिश्ते, न ये चाहत कहाती है । सबेरा नित किया करती,चहकती प्रीति अभिलाषा, महकती शाख वह…

  • गीतिका

    गूँजती पद चाप

    गीतिका —- गूँजती पद चाप जो उर में समाते तुम रहे । राग की रोली बिखेरे पथ दिखाते तुम रहे । शून्य अधरों पर हया मुस्कान बन कर छा गयी, प्यास जन्मों के विकल मन की बुझाते तुम रहे। कंटकों में राह तुमने ही बनायी दूर तक, फूल बनकर श्वांस में यों पास आते तुम रहे । लौट आओ हर खुशी तुमसे जुड़ी हैआस भी, धूप की पहली किरण बनकर सजाते तुम रहे । हो हृदय नायक इशा विश्वास भी तुमसे सभी , स्वप्न सारे पूर्ण हों राहें बनाते तुम रहे। जल रहा मन द्वेष से हर पल विरोधी सामना, मूल्य जीवन का सतत यों ही सिखाते तुम रहे ।…

  • #गीत

    “तोय तुमुल तट तटिनी से”

    माह सावन को समर्पित । #गीत आया सावन मनभावन , पात-पात हरषे मुकुलित। नयन सुभग आतुर चितवन,प्रीत भरी कलिका अन्वित । आस जगी पग नूपुर की , ठुमक उठी मन की डाली । दे संदेशा विरहन को, ज्यों तीन ताल भूपाली । सुर लिए कहरवा टिप-टिप,नृत्य करे बरखा पुलकित । आया सावन मनभावन , पात पात हरषे मुकुलित । पहन धरा चूनर धानी ग्राम्य वधू सरसी हरषीं । भरी कलाई खनक उठी, कर हरी चूड़ियाँ हुलसीं । तोय तुमुल तट तटिनी से ,उफन-उफन होतीं गर्वित । आया सावन मनभावन , पात-पात हरषे मुकुलित । #लता सुहाए मास-दिवस, झूले सखियाँ तरु छैंया । शिव आराधन पर्व सहित, चले मिलन को पुरवैया…

  • #गीत

    “बेल पत्र के त्रिगुण भाव से “

    #गीत शिवत्व महिमा लेकर आया, सावन पहने चोला । संतों की आहुति से दिशि-दिशि,पूज्य हुए शिवभोला । महकी समिधा भीनी-भीनी, मंत्रों से मनभावन । आक पुष्प से शंभु सुहाए, गौरी के प्रिय पावन । दूध-पूत से धरा नहाई, खुशियों से मन डोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने चोला । पंचगव्य से आँगन-आँगन, गमक उठे तन चंदन । कुमकुम बेंदी माथ सुहाए, सजनी करती वंदन । अनहद गूँजे गीत सावनी, झाँझर बाजे टोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने चोला । लता-प्रेम की ढुरि-ढुरि गाए, मृदु जीवन संसारी । “बेल पत्र के त्रिगुण भाव से, प्रिय! भोले भंडारी। कजली,तीजा पर्व सावनी, साजे लगन तमोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने…

  • #गीत

    “गुरु बिन कौन सँवारे”

    #गीत जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मरकत मणिमय निहित सरोवर, किरण प्रभा छवि गुंफित । सुखद सलोनी आभा अविरल, पात-पात पर टंकित। निखर उठा है पंकिल तन ये,मुकुलित नैन निहारे । जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । मीन उलझती रही निरापद, शैवालों में खेले । सरसिज काया मदमाती यों, अगणित बाधा झेले। सतह-सतह पर कुटिल मछेरे,बगुले हिय के कारे । जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । लता सीख देती ये कणिका, मन को करें न दूषित। धर्म नीति भावों की सरिता, निश्चित होगी भूषित । नया…

  • #गीत

    धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया –

    गीत —– —- धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया । मदन बाण तरकश लेकर संँवरिया —- चंचल बयरिया सजन मन भावै। सुध-बुध छीनै ये जिया तड़पावै । अँगना में बोलै सुगन हरजाई । छल-छल छलके है काँधे गगरिया, धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——-। सतरंगी आभा किरण बगरा के । इंद्र-धनुष जो तना गहरा के । कटि बलखावे बावरो पग नूपुर, चैन कहाँ पावै अनहद गुजरिया । धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——–। दर्पण देखत शृंगार मनभाए । रंग पिया मोहे चटक हुलसाए । लौंग सुपारी के वीड़ा अधर ज्यों, यौवन की आई खड़ी दुपहरिया धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया —–। ———-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • #गीत

    “पावस झरे”

    #गीत बरखा सावन भाये प्रियतम साँसों को महका रही । लगा डिठौना कारी बदरी पग घूँघर ठुमका रही । #गीत बढ़ी तृषा हिय हुलसित गाए, होनी हो अनहद भले । करें दिग्भ्रमित घाट-पाट ये, अनहोनी हर बार टले । मौसम की मनुहार करे मन कँगना जो खनका रही । जादू टोना काम न आये , मन मयूर छन-छन करे , शाख-शाख पर कूक सुहाए रिमझिम जब पावस झरे । नृत्य सुखद यह भाव-भंगिमा , सजनी कटि मटका रही ——— डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

  • #गीत

    “कला खिले मधुराकर की”

    #गीत सजा रही हूँ स्वप्न चंद्र पर, राग रागिनी अंतर की । अमा लिखे क्यों श्वेतांबर पर,कला खिले मधुराकर की, उड़ जाते उस छोर सुहाने, सपने सच करने दो बस, संग सखा बन घूमे जैसे,यह संगिनि मौन सफर की । सरस चाँदनी भरती धरती,ज्यों बदरी बीच निहारे । आखर ढाई उलट पलटकर,पृष्ठ लिखे बिखरे तारे । टिम-टिम जुगनू दादुर झींगुर,कटी निशा नभ प्रातर की, अमा लिखे क्यों श्वेतांबर पर,कला खिले मधुराकर की । गाए कैसे बनजारा मन, नहीं सुलाए जब लोरी । श्वांस भरे तन केवल जीवन,भव बंधन की यह डोरी । साँझ सकारे नयन हमारे, अभिनव सजते आखर की, अमा लिखे क्यों श्वेतांबर पर,कला खिले मधुराकर की। उड़ जाते…

  • #गीत

    “उन्नति करती राष्ट्र चेतना”

    #गीत सत्य-साधना-संकल्पों से, सदा रहें अनुरक्त । चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज । ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज। राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******* राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, होगा तन उद्दाम । नगर-गाँव हो बहुविध उन्नत,सबको मिले मुकाम । मर्यादा शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******** कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान । साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान । महके समिधा जप-तप की क्यों,मन होता संतप्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । *********************डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • #गीत

    “देख सजन लालित्य”

    #गीत हरित कहानी होगी पूरी, तुम से हे! ऋतुराज। विहँस पड़ी ये नव्य मालिका,सुन्दर ये आगाज़। महक उठी रजनी गंधा से,निशा करे अभिसार। धरा सजाए गुलमोहर से, लहके पथ अंगार । फाग बसंती जामा पहिरे, पटुका बाँथे भाल । फूलन से बगिया सँवरी नित,हरित पीत तन लाल । माँग भरो सिंदूरी आकर,तुम मेरे सरताज । हरित कहानी होगी पूरी तुम से हे!ऋतुराज। मंत्र पूत हो नित्य साधना, प्रियवर तुम आदित्य । ओढ़ चुनरिया वसुधा रोपे, देख सजन लालित्य। मोह रहा मन दिग दिगंत तक,तुम जो आये कंत । वर्ष-वर्ष तक वैभव तेरा , सदा रहे जीवंत । फूल-फूल औ पात-पात से,उपवन करते नाज, हरित कहानी होगी पूरी तुम से हे!…

  • #गीत

    “हँसना जग से जाना”

    #गीत ————— बंधन प्यारा नेह देह का,बुनकर ताना बाना । रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना । लुक छुप करते बचपन बीता,आयी जब तरुणाई । मुड़ कर तेरा दीद करूँ क्या, हँसती है अरुणाई । सब रस बाहें फैलाये वह, सुंदर लगा सबेरा, ऊँच नीच या भेदभाव हो, कोई नहीं बहाना । रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना । समझ न आये किस पथ जाना,फूल कहीं थे काँटे । सुख दुख की छाया में बीते, मिलकर हमने बाँटे । अपने और पराये की नित, दुनिया करे बखेड़ा, जगत साधना सत्कर्मों की,उसको सफल निभाना । रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना ।…

  • #गीत

    “लक्ष्य सही हो दिशा मिलेगी”

    लक्ष्य सही हो दिशा मिलेगी,संस्कृति अपनी कहती । गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती । दूध-पूत से धरा नहाई, अब तक बीतीं सदियाँ, संतों से अभिमंडित आश्रम,बलखातीं ये नदियाँ । कर्म प्रमुख है मनु जीवन में,संबल तुम हो धरती । ————गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती । लिखित सभी हैं साक्ष्य आज भी,अवतारों की बातें । जीवन-यापन करने निश्चित,देव धरा पर आतें । ऊँच नीच की कलुष दाँव में,मिटती कंचन काया , थिर न रहे यह दंभ मान जो, मही हमारी डरती । ————–गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती । कंचन होना पारस छूकर, कथन नहीं मन बाँधे । क्या खोया या पाया आकर, जीव उठा तन…

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