गुन के गाहक सभी

दोहा गीतिका
ढूंढ रहा चंचल नयन,चातक से चहुँ ओर ।
विकल प्राण है जीव का,दिखे न जीवन छोर ।।
गुन के गाहक हैं सभी, जाति न पूछे प्रीति ।
तन मन है वह खींचता,बाँधे रेशम डोर ।।
धन्य गुलाब की पाँखुरी,कंटक घेरा डाल,
काँटों की गरिमा बढ़ी,रक्षक है वह कोर ।।
भ्रमर पथी का प्रेम भी, निर्मल नीति निहाल ।
कहलाता मन मीत वह,श्याम सखा चितचोर ।।
आँगन तुलसी से रहे, काया सदा बहार ।
चहक चिरैया रहे सदा,मनभावन यह शोर ।।
मूढ़ मती सबसे भलें, ज्ञान करे संग्राम ।
प्रेम दिवानी बेल तो, धरे शाख की पोर ।।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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