• गीतिका

    हमारा हिंदुस्तान!!

    आधार-छंद: रास 16/6 समांत: आनापदांत: बन्द करो। गीतिका —- सदा अँधेरे तीर चलाना,बंद करो । रास न आये रंग जमाना,बंद करो । 1 अधिकारों की बातें करना,ठीक नहीं, किस्सा अपना वही पुराना,बंद करो। अंग भंग कर पुण्य धरा को,बाँट दिया । घायल माँ को और सताना, बंद करो । उर के दाहक चीर हरण कर,बैठ गये, बातों से अब मन बहलाना, बंद करो। हित चिंतन में बने विरोधी,आपस में शब्दों के सब तीर चलाना,बंद करो। दया प्रेम सद्भाव बसाओ,जन-जन में, षडयंत्रों का पाठ पढ़ाना, बंद करो । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    उम्मीदों का आकाश!

    गीतिका — गगन चूमता गिरि शिखर,प्रात करे शृंगार । दिशि प्राची मन मोहिनी,कंचन पहने हार । मुदित हुआ जनु बाल रवि,कंदुक रहा उछाल, गगनाँचल से हो रही, खुशियों की बौछार । नीली छतरी के तले, जीवन के हर रूप, भोग व्याधि संघात से,बचा न कोई द्वार । भूख,ग़रीबी यातना, रोटी की अरदास, पड़े दीन असहाय का,धरा-गगन घर बार । खपा चलीं हैं पीढियाँ,अपने पन का मंत्र, आस भरे आकाश का,दाता पालन हार । बरखा सावन फागुनी,शीत साँवरी रात, शून्य; नहीं ये प्रेम नभ,समझो सब विस्तार। ———————डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

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