खुली जिंदगी

यह जीवन है —–

दिखाई तुम्हीं ने डगर साधना ।
जगे पीर अंतस यही भावना ।
हया से झुकी जो कही अनकही,
हुए नैन से नैन का सामना ।
चली थी कभी जो उसी राह से,
भुला दूँ उन्हें ये नहीं कल्पना !
बिताये गये साथ भूले नहीं,
रहें दर्द बनकर यही याचना ।
लिखीं जो किताबें खुली जिंदगी,
रही हर घडी़ प्रेम की कामना ।
———–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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