• गीतिका

    अहसास है होली

    गीतिका —- सजाता फागुन का यह मास है होली । जगाये मधुर मिलन अहसास है होली । सारा रा रा रा ,रा जोगीड़ा झूमें, रंग रंगीला रास विलास है होली । भौंरे डोले सुध बुध भूले मतवाले, कली कली पर मुखर नव हास है होली । डूब रहा तन मन होकर सतरंगी , बिखेरे वासंती उल्लास है होली हो चढ़ा भंग सब अंग तरंगित जैसे, प्रेम सबै बनाये मन दास है होली । डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    शुभकामनाएँ

    मनीषी मंच ——- गीतिका —— झूम उठा मन यौवन छाया । देख सखा मधुमास सुहाया । कली गली शोभित अँगनाई, मीत रसाल अजब बौराया । कंचन सर्षप पीत वधूटी, खनके नूपुर मन भरमाया । लोचन खंजन मनस विहंगा, छलके मधुरस फागुन आया । रंग भरे नभ भूतल शोभा, बन रसिया मनमीत लुभाया । पहरू सीमा साध रहें हैं, बन रक्षक संकल्प उठाया । देश प्रेम का चोला पहने, रंग वसंती है रंँगवाया । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    फागुन आया

    जगती मन में इक आस नयी,पर्वों की कथा पुरानी है । जो देश काल को जोड़ चले,वह नीति प्रथा अपनानी है। 1 फाग उड़ाता फागुन आया,जब हरे भरे खलिहानों से, धरा करे शृंगार लहर कर,चूनर पहिने फिर धानी है । 2 कोयल कूके अमराई में,बौरे रसाल मदमस्त करे, टेसू पलाश भी रंग भरे, फूलों ने चादर तानी है । 3 जब मन मधुकर खोले पाँखें,पात पात सरसाये पुलकित, सुख सपनों में डूबे असीम,हम राह नहीं अनजानी है ।4 शाश्वत कीर्ति भरत भूमि की,अक्षुण्ण रहे जीवन दर्शन, संस्कृति अपनी श्रेष्ठ सदा ही,नित सत्य कहे कवि बानी है ।5 बोध आत्मबल सैन्य शक्ति से,आन्दोलित अपना जन मानस, राजनीति की चाल त्रासदी,क्यों बढा़…

  • गीतिका

    आन के लिए

    आधार छंद- वाचिक चामर मापनी – गालगाल गालगाल गालगाल गालगा 2121, 2121, 2121,212 समांत – आन, पदांत- के लिए गीतिका —– वार दें सु स्वप्न प्राण देश आन के लिए । गर्व है हमें अनंत शौर्यवान के लिए । वंदनीय हैं शहीद मातृभूमि के सदा, धन्य ये शहादतें धरा महान के लिए । जागिए सुजान ये धरा पुकारती हमें । राज नीति की बिसात है न मान के लिए । हेकड़ी जमा रहे विकार युक्त लोग जो, स्वार्थ में जुटे वही न मर्म ज्ञान के लिए। टूटता समाज है कुरीतियाँ फसाद से , मीत एक हों सभी बढ़े निदान के लिए । बूँद बूंद रक्त में प्रवाह देश प्रेम हो…

  • गीतिका

    रंगों की विविधा है जीवन

    आधार छंद – लावणी मात्रा = 30 – 16,14 पर यति समांत – आने पदांत – से गीतिका —— रंगों की विविधा है जीवन, सजते ये अपनाने से । छाप छोड़ता कर्म हमारा, अपने रंग जमाने से । जहाँ तहाँ बिखरीं हैं खुशियाँ,ढूँढ उन्हें फिर लाना है, जब तब मौके मिलते हमको,मिलकर कदम बढ़ाने से । पलक झपकते बीत रहा पल,आओ उन्हें सँवारे हम, कम क्यों आँके क्षमताओं को,,बात बने समझाने से । दूर विजन कानन भी बोले,चटक चिरैया चुन मुन सी, सूरज अपने पाहुन लगते, सपने नैन जगाने से । जीवन एक खिलौना जिसमें,चाभी भरना प्रतिपल है, समता लायें सुख दुख में हम,हँसकर उसे बिताने से । रात सितारे…

Powered By Indic IME