दिन के ढलने से !

आधार छन्द-विष्णुपद (मापनी युक्त, मात्रिक, 26 मात्रा)
विधान-26 मात्रा,16-10 पर यति,अंत वाचिक गा
समान्त-अलने ,पदान्त-से
गीतिका —
सुखदा परिणति हो जन्म-मरण,सत्कृत फलने से ।
ज्योतित होती हर शाम यथा, दिन के ढलने से ।

जल-खप जाना इक दिन जीवन,कहतें है मिथ्या,
सुंदर हो परिणाम सदा पथ, सार्थक चलने से ।

छली बली करते निर्ममता, रक्षक ही भक्षक,
सूनी गलियाँ – चौबारे इक , कटुता पलने से ।

दुख से चिंतित राही मनवा, सोचे उपकारी,
बचा सकें हम हित समाज कर,नित यूँ जलने से ।

प्रेम सत्य ये फुलवारी जो,दुर्लभ जन्म मनुज,
छीन रहें हैं व्यर्थ गँवाकर , इसको छलने से ।
—————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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