• गीतिका

    राजनीति में दंगल

    आधार छंद – सरसी गीतिका — राजनीति दंगल में देखें,कैसा मचा धमाल । मौन धृष्टता करें अराजक,गहरी जिनकी चाल । एक एक कर खुले पुलिंदे,भीतर घाती भेद, नैतिकता का नाम नहीं है,अजब बुना है जाल । सत्ता लोलुप आज तुम्हारा,होगा काम तमाम, कर्म भीरु अब यों कटुता की,नहीं गलेगी दाल । कृत्य घातकी देश विरोधी,कितनी भरें उडा़न, पंख काटते निश्चित अपनी,गिरना उन्हें निढाल । कुटिल आचरण अर्थ कामना,भोग वृत्ति अभिमान, छल-बल घाती कला तुम्हीं ने,अंतस रक्खी पाल । बना तमाशा देख रहा जग,खेद मदारी कौन, आपस की तकरार न छोडे़ सदा बजावें गाल । करनी ओछी करने वाले,बचें ईश नाराच, छद्म प्रेम औ लूट मार को,इन्हे न छोडे़ काल ।…

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