• गीतिका

    अधिकार माँगे

    छंद- इन्द्रवज्रा (द्विगुणित) वर्णिक मापनी 22 1 22 1 121 22, 22 1 22 112 122 पदांत- देगी समांत- आन गीतिका — राहें बनातीं अविकार शिक्षा, सोचें भला तो अनुदान देगी । संकल्प पाना अधिकार माँगों,शिक्षा सही हो समा’धान देगी। चिंता बढ़ाये विकराल दंगे,होगें सभी ये दिग भ्रांत मानें, संग्राम घातें हठ से बढे़गी,निंदा सदा ये अवमान देगी । बेबाक बातें दुखड़े न कोई, द्रोही बनें हैं कुछ आततायी, होगी भलाई जिससे कहीं क्या,अंगार है ये नुकसान देगी। जागो उठो देश तुम्हें बचाना,आंदोलनों से कुछ लाभ है क्या? धोखा स्वयं को छलना कहेंगे,चालें कुचालेंअनजान देगी। जागो युवा हे प्रहरी धरा के,भू भारती की गरिमा तुम्हीं से, गाओ तराने वह प्रीत…

  • गीतिका

    हमारा हिंदुस्तान!!

    आधार-छंद: रास 16/6 समांत: आनापदांत: बन्द करो। गीतिका —- सदा अँधेरे तीर चलाना,बंद करो । रास न आये रंग जमाना,बंद करो । 1 अधिकारों की बातें करना,ठीक नहीं, किस्सा अपना वही पुराना,बंद करो। अंग भंग कर पुण्य धरा को,बाँट दिया । घायल माँ को और सताना, बंद करो । उर के दाहक चीर हरण कर,बैठ गये, बातों से अब मन बहलाना, बंद करो। हित चिंतन में बने विरोधी,आपस में शब्दों के सब तीर चलाना,बंद करो। दया प्रेम सद्भाव बसाओ,जन-जन में, षडयंत्रों का पाठ पढ़ाना, बंद करो । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    उम्मीदों का आकाश!

    गीतिका — गगन चूमता गिरि शिखर,प्रात करे शृंगार । दिशि प्राची मन मोहिनी,कंचन पहने हार । मुदित हुआ जनु बाल रवि,कंदुक रहा उछाल, गगनाँचल से हो रही, खुशियों की बौछार । नीली छतरी के तले, जीवन के हर रूप, भोग व्याधि संघात से,बचा न कोई द्वार । भूख,ग़रीबी यातना, रोटी की अरदास, पड़े दीन असहाय का,धरा-गगन घर बार । खपा चलीं हैं पीढियाँ,अपने पन का मंत्र, आस भरे आकाश का,दाता पालन हार । बरखा सावन फागुनी,शीत साँवरी रात, शून्य; नहीं ये प्रेम नभ,समझो सब विस्तार। ———————डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    बिखरा हुआ समाज

    गीतिका आधार छन्द – सम्पदा मापनी – 221 2121 1221 2121 गागाल गालगाल लगागाल गालगाल बिखरा हुआ समाज,सहे वेदना अपार । बाधा हरो सुजान,सहज नीति लो विचार । हारा लगे विवेक, सभी कर रहे विवाद, विश्वास खो अधीर,उगलते सतत विकार । आस्था हृदय विशेष,करो धर्म-कर्म नेक, श्री राम जी सहाय, सुने दीन की पुकार । तज मोह निर्विकार,भजो दीनबंधु नाथ, मंदिर बने विशाल,खुले नित प्रवेश द्वार । अनुबंध हो सप्रेम, मिले राह भी अनेक, निर्माण मूल स्रोत, यही मानिए न हार । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    दीप पर्व

    आधार छंद – विधाता गीतिका 1222 1222 1222 1222 समांत – आती, पदांत – है ! ————————– गगन तारों भरा जैसे,धरा भी जगमगाती है । दिये की रोशनी जगमग,खुशी के गीत गाती है । अभावों के अँधेरे को,चलो मिलकर मिटायें हम, लुटायें अंजुरी भरकर,मनुजता रंग लाती है प्रकाशित यामिनी होती,तरंगित दीप्त लड़ियों से, अँधेरा रह न पाये यों,निशा भी झिलमिलाती है । अमावस रात काली यह,सहज दीपक सजायें हम, सपन नैना सजायें ये, हवा भी गुनगुनाती है । जलाओ प्रेम के दीपक,बहे मन नेह धारा में, सजे मंगल कलश ज्योतित,यही शोभा लुभाती है । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    चाहते हैं बहुत

    गीतिका आधार छंद – वाचिक स्रग्विणी मापनी – 212 ,212 ,212, 212 समांत – आते ,पदांत नहीं चाहते हैं बहुत बस दिखाते नहीं । बुद्ध की यह धरा भूल पाते नहीं । देश उत्थान में हम बढ़े हर डगर, शीश उन्नत रहे हम झुकाते नहीं । प्राण आतंक से भीत क्यों अब रहे, राष्ट्र हित दीप को हम बुझाते नहीं । गीत गाते अधर गुनगुनाते रहें , लेखनी की लगन हम घटाते नहीं । कारवाँ प्रीत का हम बढ़ा यों चलें । पीर आँसू बना कर बहाते नहीं । गर्व से भर उठे मन खुशी से जहाँ, प्रेम कोई कमीं हम दिखाते नहीं । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    राहें बनाती है।

    मापनी – 1222 1222 1222 1222 समान्त – आती पदांत – है गीतिका नयन से दूर हो जो तुम,उदासी यह न जाती है । सुखद यादें जहाँ हर पल,हमें यों ही सताती है । तड़पना यह जरूरी है,सही अहसास का होना, निकट हों फासले मन में,करीबी यह न भाती है । चलो अच्छा हुआ अपने,पराये का पता होना, दुखों में साथ जो अपने,कहानी वह सुहाती है । भटकते भाव मधुरिम जो,उबरते डूब कर ही हम, मुझे तुमसे तुम्हें मुझसे, यही हमको मिलाती है बनाकर राह बढ़ते खुद,सहज पाते स्वयं को हम, जहाँ बंधन लगे रिश्ते, न ये चाहत कहाती है । सबेरा नित किया करती,चहकती प्रीति अभिलाषा, महकती शाख वह…

  • गीतिका

    मिशन चंद्रयान 2

    आधार छंद- गीतिका (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा समांत- आन, पदांत- से गीतिका —+++ सत्य का संधान होगा,कामयाबी ज्ञान से । लक्ष्य पूरा कर सकेंगे,फिर नवल अभियान से । चाँद मुट्ठी में करेंगे, हौसले देना सभी, बढ़ चलें हम सीख लेकर,हों सफल हम शान से । उस बुलंदी को नमन है,जो शिखर हमको मिला, मुड़ नहीं सकते कदम अब,नीति पथ संज्ञान से। नित्य रोचक लक्ष्य अपना,सत्य से सौगात तक, मन मनोरथ उच्च रखिए,गर्व हो पहचान से । चूमती हैं सिद्धियां भी,नित उन्ही के पाँव जो, भीत मन रुकते नहीं हैंं, वे तनिक व्यवधान से । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    बंसरी श्याम की

    गीतिका- आधार छंद – दोहा मुरली माखन चोर की,राधे लीन्ही छोर । डाह रही सौतन बनी,लिए फिरें निशि भोर ।। बिसरें नाहीं वाहि को,यशुमति तेरे लाल , हाथ कँगन क्या आरसी, देखें नैना मोर । मोहन को भरमाय के,धेनु चरावें दूर , भूल गये माखन मधुर,मेरे नंद किशोर । बंसरि कस बैरन भई,श्याम हमारे बीच , प्रीति हमारी मोल ले,छीन रही चितचोर । प्रेम नयन न झपकि रहें,ठान करें अब रार, गोपिन संग रास करत,मुरली करत विभोर । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    कृष्ण जन्मोत्सव

    आधार छंद – दोहा समांत – आर (अपदांत) सुत सेवक वसुदेव के,कहते नंद कुमार । जननी न्यारी देवकी,यशुमति करें दुलार ।। धन्य धन्य हे मात द्वै,धन्य गोकुला ग्राम । कहलाये तुम नंद सुत,गोपिन के आधार ।। बड़भागी वह बंसरी, अधर धरे श्रीधाम, ठुमकि सजावे पैजनी,श्रीधर पाँव पखार ।। धेनु ,सखा,नवनीत के,बिना न सोहें नाथ शीश धरे पंँख मोर छवि,नैनन के शृंगार ।। विरहनि मीरा श्याम की,मान करे वह दासि संग सोहती राधिका, प्रेम बसे नित द्वार ।। डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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