धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया –
गीत —–
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धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ।
मदन बाण तरकश लेकर संँवरिया —-
चंचल बयरिया सजन मन भावै।
सुध-बुध छीनै ये जिया तड़पावै ।
अँगना में बोलै सुगन हरजाई ।
छल-छल छलके है काँधे गगरिया,
धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——-।
सतरंगी आभा किरण बगरा के ।
इंद्र-धनुष जो तना गहरा के ।
कटि बलखावे बावरो पग नूपुर,
चैन कहाँ पावै अनहद गुजरिया ।
धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——–।
दर्पण देखत शृंगार मनभाए ।
रंग पिया मोहे चटक हुलसाए ।
लौंग सुपारी के वीड़ा अधर ज्यों,
यौवन की आई खड़ी दुपहरिया
धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया —–।
———-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी