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हिना के रंग
गीतिका— मापनी-1222 1222 1222 1222 समांत – आमपदांत – लिक्खा है हिना के रंग में हमने तुम्हारा नाम रक्खा है । छिपाकर प्रीत का आखर उसे बेनाम रक्खा है । कहीं कोई न मुझसे छीन ले यह प्रेम का बंधन, सजाया है उसे मन में भला अंजाम रक्खा है । मिलन तुमसे न चाहूँ मैं रही अरदास इतनी सी, तुम्ही में खो सकूँ खुद को सुबह से शाम रक्खा है । कली का मान रखना तुम कहीं विश्वास मत खोना, मिटा दो दाग जीवन का जिसे बदनाम रक्खा है । कि रिश्ते क्यों रहें रिसते मधुर पावन बने नाता, महकती है हिना जैसे कि मीरा श्याम रक्खा है । डॉ.प्रेमलति…