• #गीत

    नंदी पर अवधूत

    #गीत फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार। सुमुख कली शैफालिका,अवनि करे गुलजार । मदन बाण मन मोहिनी, चला रहे ऋतुराज, श्वेत बसंती चहुँ बिछे, सरसों;- हरसिंगार । फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार। शिव व्याहन को चल पड़े,सजी लगे बारात । औघड़ दानी स्वयं जो,गण समूह के तात । पहन चले बाघम्बरी, माथे सजा मयंक, पारिजात अभिसार से,महका मन अहिवात । गूँज उठा कैलाश नग, महादेव जयकार । फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार। बेलपत्र , धतूरा के ,अजब निराले ढंग । बेढब औघड टोलियाँ,नाचें पीकर भंग । दक्षसुता को व्याहने, नंदी पर अवधूत, डम डम डमरू नाल पर,मुदित चले हुड़दंग हरित गुलाबी पीत की,रंगों की बौछार…

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    गूँज उठा कैलाश नग

    #गीत फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार। सुमुख कली शैफालिका,अवनि करे गुलजार। मदन बाण मन मोहिनी, चला रहे ऋतुराज, श्वेत बसंती चहुँ बिछे, सरसों;- हरसिंगार । फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार। शिव व्याहन को चल पड़े,सजी लगे बारात । औघड़ दानी स्वयं जो,गण समूह के तात । पहन चले बाघम्बरी, माथे सजा मयंक, पारिजात अभिसार से,महका मन अहिवात । गूँज उठा कैलाश नग, महादेव जयकार । फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार। बेलपत्र , धतूरा के ,अजब निराले ढंग । बेढब औघड टोलियाँ,नाचें पीकर भंग । दक्षसुता को व्याहने, नंदी पर अवधूत, डम डम डमरू नाल पर,मुदित चले हुड़दंग हरित गुलाबी पीत की,रंगों की बौछार ।…

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    अरे ! ऋतुराज आओ तुम

    #गीत (छंद विधाता ) बिखेरो रंग वासंती,अरे ! ऋतुराज आओ तुम। करें सब आचमन जिसका,पवन खुशबू बहाओ तुम! सुखद अहसास देती जो, किरण हो भोर सी पावन । मधुप की प्रीति मधुशाला, महकता ही रहे आँगन । सजेंगें प्रेम से तन मन, मनुजता से सजाओ तुम । बिखेरो रंग वासंती,अरे!ऋतुराज आओ तुम । खिलेगी माधवी जूही, सहज हो श्वांस मधुमासी । मिले बिछुड़े बहाने से, भले हो आस आभासी । गली पथ को सजाना है,मने उत्सव न जाओ तुम। बिखेरो रंग वासंती,अरे! ऋतुराज आओ तुम । ‘लता’ भी रागिनी गाये, मदन मन मोहिनी माधव । शिवम जन-जन समाये जो, बसे प्रति प्राण में राघव । विधाता ने रचा जिनको, उन्हें…

  • #गीत

    ‘अरे ! ऋतुराज आओ तुम’

    #गीत (छंद विधाता ) बिखेरो रंग वासंती,अरे ! ऋतुराज आओ तुम । करें सब आचमन जिसका,पवन खुशबू बहाओ तुम! सुखद अहसास देती जो, किरण हो भोर सी पावन । मधुप की प्रीति मधुशाला, महकता ही रहे आँगन । सजेंगें प्रेम से तन मन, मनुजता से सजाओ तुम । बिखेरो रंग वासंती,अरे!ऋतुराज आओ तुम । खिलेगी माधवी जूही, सहज हो श्वांस मधुमासी । मिले बिछुड़े बहाने से, भले हो आस आभासी । गली पथ को सजाना है,मने उत्सव न जाओ तुम बिखेरो रंग वासंती,अरे!ऋतुराज आओ तुम । ‘लता’ भी रागिनी गाये, मदन मन मोहिनी माधव । शिवम जन-जन समाये जो, बसे प्रति प्राण में राघव । विधाता ने रचा जिनको,उन्हें जीना…

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    हवा फागुनी चंचल

    #गीत बंधन नेहिल रेशम के, उस डोरी का क्या कहना । जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना । नित पलकों के झूले में, सतरंगी यादें गातीं । मगन घूमती परियों सी निज श्वेतांबर फहरातीं । घन चैती फलक बिछाए, उस गोरी का क्या कहना। जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना । मृदुल पाँखुरी प्रीत भरी, ज्यों खुले कपास बिनौलें । मंत्र मुग्ध कर देते हैं, मौज असीमित क्या तौलें । औ हवा फागुनी चंचल, मति भोरी का क्या कहना । जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना । करती है प्रीत निछावर, पुलक उठी वसुधा धानी । सरसों पियरी…

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    “मुस्करा प्रभा उठी”

    #गीत दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । मुस्करा प्रभा उठी कली-कली खिला रही । लालिमा विहान की दिगंत में मिला रही । पंक्तियाँ विहंग की मगन-गगन विहारतीं । भावना नहीं अलस प्रभात को निखारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । हिंद है अखंड आन-मान को सँवारिए । हार -जीत राग-द्वेष पुण्य से न हारिए । कष्ट शीत द्वंद्व या बयार से उबारतीं । रश्मियाँ सदैव भेदभाव को नकारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । प्राणवान हो सदा सहर्ष कर्म आप से । कष्ट व्याधि हो नहीं समाज धर्म आप से । वृद्ध बाल वृंद से युवान को सँवारतीं । प्रेम सत्य मार्ग हो कुव्याधि नित्य…

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    “मुस्करा प्रभा उठी”

    #गीत दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । मुस्करा प्रभा उठी कली-कली खिला रही । लालिमा विहान की दिगंत में मिला रही । पंक्तियाँ विहंग की मगन-गगन विहारतीं । भावना नहीं अलस प्रभात को निखारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । हिंद है अखंड आन-मान को सँवारिए । हार -जीत राग-द्वेष पुण्य से न हारिए । कष्ट शीत द्वंद्व या बयार से उबारतीं । रश्मियाँ सदैव भेदभाव को नकारतीं । दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं । प्राणवान हो सदा सहर्ष कर्म आप से । कष्ट व्याधि हो नहीं समाज धर्म आप से । वृद्ध बाल वृंद से युवान को सँवारतीं । प्रेम सत्य मार्ग हो कुव्याधि नित्य…

  • #गीत

    चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ —

    #गीत चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ — कह दो उनसे पास न आए । कितनी गहरी अर्थ भरी हो, बातें जिन की खास सुहाए । छीना जिसने जग की खुशियाँ निशा घुली अरमानों वाली । दे न सकी जो नेह निमंत्रण, सूनी सेज रही जो खाली । लिखते गये पृष्ठ अतीत के, बैठी उन्मन रास न आए । यादें मीठी बातें उनकी सपने वे जो लगे किनारे । देकर दर्द न जाये रैना, उनको प्रतिपल रही सँवारे ढूँढ रही मंजिल अपनी जो नयी नज्म विश्वास जगाए । निष्ठुर जग की रीति निभाना धड़कन छीने चिंता घाती, साथ चले अनुकूल नहीं ये, जिसको कहते अपनी थाती ‘लता ‘हृदय से भेद मिटा दो-,…

  • #गीत

    कहती ग्वालन राधिका

    #गीत श्याम प्रीत की डोर सँभालो, कहती ग्वालन राधिका । पीर हरो पिय,आकर मेरी, पुष्पित हो उरमालिका । मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे,रहूँ तुम्हारी साधिका । भर दो सुर लय ताल साँवरे सरस भाव अमृत पावन । बाट जोहती प्रिया तुम्हारी, मधुबन सखा घन सावन । भटक रही तनु श्यामल गोरी, धेनु सकल विकल कानन । ढूँढ रही हैं वन-वन तुमको, श्यामा कृष्णा सारिका । मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे, रहूँ तुम्हारी साधिका । कल-कल बहती यमुना गह्वर, तट तारिणी हरि माया । लहर लहर पर छाप तुम्हारी, कदंब हरित की छाया । द्वेष भूल हे ! नटवर नागर- नाग कालि को भरमाया । गगनांचल से पुष्प झरे ज्यों, चमक…

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    रश्मि रथी प्रतिपाल

    गीत- कर्म विलसता जीवन तपकर,देकर हमें मिसाल । जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल । *लक्ष्य बिना फिर जीना कैसा, मौन रहा आधार । मधु पराग रस सिञ्चित क्यारी, मधुकर पद सञ्चार । शून्य गगन औ धरा बीच हम,सभी घिरे भ्रमजाल । जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल । *पालन करता स्वयं विधाता, कर्म हमारे हाथ । जीवन माला हरिनाम सखे, कृपा ईश जग साथ । विपुल संपदा मानव तन-मन,हम हैं माला माल । जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल । *नेक साधना हाथों में फिर, भाग्य कहाँ अनजान, विविध कर्म माया नगरी में, सच की कर पहचान, धैर्य साध बढ़ते जाना मत,भाग्य भरोसे टाल । जीवन…

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