
“अपनी डफली अपना राग”
गीत
शून्य चेतना अंध चाह में, दौड़ मचाती भागमभाग ।
सूझ-बूझ से करें न साझा,अपनी डफली अपना राग ।
रहे पृथक जो अपने मद में,
हठधर्मी जिसका व्यवसाय।
नीति धर्म परिवारी जीवन
अपनी दुनिया कायम समवाय ।
मतभेदों का मिथक भरोसा,कलुष भरा कब छूटे दाग ।
सूझ-बूझ से करें न साझा,अपनी डफली अपना राग ।
रात घनेरी सुप्त पाँखुरी,
कौन सजाये दीपक द्वार ।
निशा बिछाए बूँद शबनमी,
करे धरा जिससे अभिसार ।
दर्द बनी जो वादी अपनी , खेल हुआ जो खूनी फाग ।
सूझ-बूझ से करें न साझा,अपनी डफली अपना राग ।
वारिद बूँदों से भर देता,
बहे उफन नदिया उन्माद।
दिखा दिया अवसाद
मर मिटने पर सभी उतारू,
नष्ट हुए या हुआ विकास ।
रही तर्क संगत दुविधाएं ,
युद्ध-शांति का लगा कयास ।
अंत अनंत विधान जगत का,व्यर्थ न हो संयम परित्याग ।
सूझ-बूझ से करें न साझा, अपनी डफली अपना राग ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी—————
(छंद आल्ह)
