“साज दे अनिंद्य तेज”
#गीत चामर छंद (वर्णिक)
शारदे सँवार दे अबोध को विचार से ।
साज दे अनिंद्य तेज लेखनी निखार से ।
अक्स अक्स खींच दे सँवार दे अनंत को ।
नीर तीर में सजे निखार दे दिगंत को ।
अभ्र श्वेत खेलते पवित्र भाव संत को ।
मध्य भानु हैं छिपे सचित्र नेक कंत को।
वंदना लिखें अजोर प्यार से दुलार से ।
साज दे अनिंद्य तेज लेखनी निखार से ।
जीव-जंतु लोक हेतु पंचतत्व है जहाँ ।
धूप छाँव से सँवार प्राण सत्व है जहाँ
जीत हार बेशुमार मानकत्व है जहाँ ।
राष्ट्र प्रेम भावना कृते घनत्व¹ है जहाँ ।
गा उठे वसुंधरा अगम्य नव्य सार से ।
साज दे अनिंद्य तेज लेखनी निखार से ।
राग रागिनी गुने अजान अंध काट दे।
लक्ष्य हो अमोघ सत्य मार्ग जो विराट दे ।
नीर क्षीर हो विवेक व्यर्थ को न घाट दे।
सिद्धि पुण्य से मिले अकीर्ति को न हाट दे।
भेदभाव के विशाल टेक को नकार² से ।
साज दे अनिंद्य तेज लेखनी निखार से ।
1 घनत्व=. घना होने की अवस्था; मजबूती ; ठोसपन;
2 नकार ‘न’ वर्ण. निषेध अथवा अस्वीकृति सूचक शब्द इनकार; अस्वीकृति।
————————डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी