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कड़ियाँ मीठी-खट्टी ।
आधार छंद- “विष्णुपद” (मापनीमुक्त मात्रिक) विधान- 26 मात्रा, 16-10 पर यति, अंत में वाचिक गा. विष्णुपद = चौपाई + 10 मात्रा (समकल) समांत _ अर पदांत _ गयीं गीतिका — पलकों में जैसे यादों की,मुक्ता ठहर गयीं । कड़ियाँ मीठी-खट्टी जिनकी,जाने किधर गयीं । नित अनजाने भय में अपने,दिन औ रैन किया, ईश तुम्हारी नगरी सगरी, कैसी बिखर गयीं । जिन अपनों को खोया हमने,कोई लौटा दे, पलतीं अवसादों की धारा,छलकीं-लहर गयीं । जीवन की आपा धापी में,किस्से हैं अनगिन, दोषी ये दुनिया या खुद की,कमियाँ सुधर गयीं । कर असीम काँटों का संचय,तथ्य गया-गुज़रा, ठहर गया हो सावन या के,बरखा गुजर गयीं । संबल प्रेम ; न हमदर्दी हो,यदि…
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किरणें हँसती जब अंचल में !
आधार – तोटक (वर्णिक) मापनी – 112×4, अथवा सगण ×4 समांत – अल पदांत – में गीतिका —– मन उत्पल कुंज खिले जल में । ठहरी मृदु बूँद कनी दल में । वसुधा अपनी छविमान हुई, किरणें हँसती जब अंचल में ! नव प्रात लिए रवि नंदित है, यह शुभ्र वितान सजा पल में । दिशि रक्तिम भाल सुहाग भरी, विहगावलि गान करे तल में । गुणगान करें मन क्यों उनका, सत दीन हुआ जब साँकल में । नित दर्द सहे जन जीवन जो उनमाद नशा भरते छल में । सत प्रेम सुधा हर आँगन हो अनुराग भरो कहती कल में । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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दृग झरना सीख
गीतिका ज्योति जलेगी स्नेह तरल नित,भरना सीख । करुण सदय हो निर्झरिणी दृग,झरना सीख । दूषित करते पावन नद को, गिरते क्षार , दोष रहित जल सुरसरि निर्मल,करना सीख। महक उठे निष्कंटक पथ हो,चल कर साथ, सुमन पथी तू सुरभित हो मन,हरना सीख । नवल चेतना भर ले तन-मन,गायें गीत चरैवेति सिद्धांत सहज है, चरना सीख, साहस खोकर जीवन कैसा,सुख-दुख भोग, काया तो क्षणभंगुर है मत, डरना सीख । सेवा कर पितु मातु हितों की,मिलता पुण्य, सतत कर्म रत भव सागर से,तरना सीख । भ्रमर गूँज से खिली वाटिका,महके प्रेम, अनुयायी सौरभ का बन पग,धरना सीख । ———– डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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‘डूबती नौका तरंगी’
आधार छंद – सार्द्ध मनोरम मापनी – 2122 2122 2122 समांत – अना, पदांत – है गीतिका —– राह सच होती कठिन ये मानना है । झूठ का हर फंद हमको काटना है । डूबती नौका तरेगी सच सहारे, इसलिए जो पथ सही हो सोचना है। गम नहीं बर्बादियों का फिर बसेगीं, बस्तियाँ वे ; हों सफल आराधना है । कर्म साधक दूर कर मतभेद को हम पौध खुशियों का हमें फिर रोपना है । है चुनौती आज शिक्षा की हमारी, ज्ञान पाये नित शिखर ये कामना है । हिंद के जागृत युवा हों साहसी पर, देश हित में; स्वार्थ उनको त्यागना है। लिख सकें यदि प्रेम करुणा की कहानी,…
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‘ईर्ष्या से कटे न जीवन’
छंद- सखी /आँसू गीतिका आँसू नहीं सुहाया है । नित्य अधर ने गाया है । प्राच्य दिशा है मनहारी, रवि ने सरस लुभाया है । वसुधा का पावन अंचल, माँ की ही प्रति छाया है । मधु कोष भरें क्यारी हम, कलियों ने समझाया है । शुद्ध चित्त इष्ट- साधना, मन अनंत सुख पाया है । निर्मोही जग ने केवल, मन को नित भरमाया है । ईर्ष्या से कटे न जीवन, प्रेमिल जगत बनाया है । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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हो अवतार नहीं है
छंद “सार” अर्ध सम मात्रिक. शिल्प विधान चौपाई + 12 मात्रा 16+12 28 मात्रा अंत में 22 वाचिक अनिवार्य समांत – आर, पदांत – नहीं है गीतिका नये दौर में लिखना साथी, अपनी हार नहीं है । हैं अतीत के साक्षी हम जो,वे साकार नहीं है । बचपन से जो रीति निभायी, देखी दुनिया सारी , राग द्वेष मनुहार सहज था,अब आधार नहीं है। धन बल की छाया में जीवन,है खो रही जवानी मात पिता की सेवा करने, का सुविचार नहीं है । पाठ पढ़ा था कुल मर्यादा,लज्जा थाती गहना, भाव प्रीति था नत नयनों में,वह शृंगार नहीं है । टूट गए है सभी मिथक अब,मिथ्या संसृति जागी, गोरख धंधे…
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राजनीति में दंगल
आधार छंद – सरसी गीतिका — राजनीति दंगल में देखें,कैसा मचा धमाल । मौन धृष्टता करें अराजक,गहरी जिनकी चाल । एक एक कर खुले पुलिंदे,भीतर घाती भेद, नैतिकता का नाम नहीं है,अजब बुना है जाल । सत्ता लोलुप आज तुम्हारा,होगा काम तमाम, कर्म भीरु अब यों कटुता की,नहीं गलेगी दाल । कृत्य घातकी देश विरोधी,कितनी भरें उडा़न, पंख काटते निश्चित अपनी,गिरना उन्हें निढाल । कुटिल आचरण अर्थ कामना,भोग वृत्ति अभिमान, छल-बल घाती कला तुम्हीं ने,अंतस रक्खी पाल । बना तमाशा देख रहा जग,खेद मदारी कौन, आपस की तकरार न छोडे़ सदा बजावें गाल । करनी ओछी करने वाले,बचें ईश नाराच, छद्म प्रेम औ लूट मार को,इन्हे न छोडे़ काल ।…
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सुन लो खेवनहार
छंद अहीर (मात्रिक) मात्रा 11 (दोहे का सम चरण ) समांत – आर ,अपदांत गीतिका —- नाव खड़ी मँझधार। सुन ले खेवनहार । सुख दुख होंगें साथ, जीवन में क्रमवार । मिटे पीर प्रभु आस, कर दो बेड़ा पार । मिलन प्रीति संयोग, विरह बढ़ाये ज्वार । माया हरे विवेक, सहज प्रेम संसार । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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भोर की लाली
आधार छंद द्विमनोरम मापनी / शिल्प विधान– 2122,2122,2122,2122 गीतिका गीत मधुरिम रागिनी से पथ बनाते हम चलेंगे । मुश्किलों में साथ अपनों का निभाते हम चलेंगे । शीत कंपित हर दिशा को दे चुनौती रश्मियाँ ज्यों, रवि किरण सतरंग सरसिज को खिलाते हम चलेंगे । भोर की लाली मनोहर काव्य मय लय छंद संगम, आचमन कर हिय सरस हो गुनगुनाते हम चलेंगें । नाव माँझी ले चलो मँझधार से लेकर किनारे, हो खिवैया श्याम – रघुवर गीत गाते हम चलेंगे । प्रेम ये अनमोल बंधन भाव से समृद्ध अर्पण, स्नेहमय विस्तार जीवन ये सजाते हम चलेंगे । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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काल चक्र
छंद लावणी/ताटंक मात्रा = 30 16,14, पर यति समांत – आयी पदांत है गीतिका…… काल काल ये काल चक्र है,ये लघु दीर्घ न ढायी है। जूझ रहे हम सभी समय की,चाल समझ कब आयी है । बीते पल की यादें अपनी,चिंतन खोने – पाने का, अगम अनागत अंत नहीं कुछ,बातें जहाँ समायी है । शुभ चिंतन में अविराम रहें,होनी हो कर ही रहती, संघर्ष रहेगा जीवन भर,अंत भला हो भायी है । बुनते ताने बाने जो हम,भरम जाल में फाँसे खुद को, करनी का फल वही मिलेगा,सुखदा या दुखदायी है। त्याग प्रेम है जीवन अर्पण,लघुता पीडा़ है मन की , करुणा मोती अंतस जिसके,खुशी वहीं मुस्कायी है । डॉ. प्रेमलता…