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चाहते हैं बहुत
गीतिका आधार छंद – वाचिक स्रग्विणी मापनी – 212 ,212 ,212, 212 समांत – आते ,पदांत नहीं चाहते हैं बहुत बस दिखाते नहीं । बुद्ध की यह धरा भूल पाते नहीं । देश उत्थान में हम बढ़े हर डगर, शीश उन्नत रहे हम झुकाते नहीं । प्राण आतंक से भीत क्यों अब रहे, राष्ट्र हित दीप को हम बुझाते नहीं । गीत गाते अधर गुनगुनाते रहें , लेखनी की लगन हम घटाते नहीं । कारवाँ प्रीत का हम बढ़ा यों चलें । पीर आँसू बना कर बहाते नहीं । गर्व से भर उठे मन खुशी से जहाँ, प्रेम कोई कमीं हम दिखाते नहीं । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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राहें बनाती है।
मापनी – 1222 1222 1222 1222 समान्त – आती पदांत – है गीतिका नयन से दूर हो जो तुम,उदासी यह न जाती है । सुखद यादें जहाँ हर पल,हमें यों ही सताती है । तड़पना यह जरूरी है,सही अहसास का होना, निकट हों फासले मन में,करीबी यह न भाती है । चलो अच्छा हुआ अपने,पराये का पता होना, दुखों में साथ जो अपने,कहानी वह सुहाती है । भटकते भाव मधुरिम जो,उबरते डूब कर ही हम, मुझे तुमसे तुम्हें मुझसे, यही हमको मिलाती है बनाकर राह बढ़ते खुद,सहज पाते स्वयं को हम, जहाँ बंधन लगे रिश्ते, न ये चाहत कहाती है । सबेरा नित किया करती,चहकती प्रीति अभिलाषा, महकती शाख वह…
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मिशन चंद्रयान 2
आधार छंद- गीतिका (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा समांत- आन, पदांत- से गीतिका —+++ सत्य का संधान होगा,कामयाबी ज्ञान से । लक्ष्य पूरा कर सकेंगे,फिर नवल अभियान से । चाँद मुट्ठी में करेंगे, हौसले देना सभी, बढ़ चलें हम सीख लेकर,हों सफल हम शान से । उस बुलंदी को नमन है,जो शिखर हमको मिला, मुड़ नहीं सकते कदम अब,नीति पथ संज्ञान से। नित्य रोचक लक्ष्य अपना,सत्य से सौगात तक, मन मनोरथ उच्च रखिए,गर्व हो पहचान से । चूमती हैं सिद्धियां भी,नित उन्ही के पाँव जो, भीत मन रुकते नहीं हैंं, वे तनिक व्यवधान से । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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बंसरी श्याम की
गीतिका- आधार छंद – दोहा मुरली माखन चोर की,राधे लीन्ही छोर । डाह रही सौतन बनी,लिए फिरें निशि भोर ।। बिसरें नाहीं वाहि को,यशुमति तेरे लाल , हाथ कँगन क्या आरसी, देखें नैना मोर । मोहन को भरमाय के,धेनु चरावें दूर , भूल गये माखन मधुर,मेरे नंद किशोर । बंसरि कस बैरन भई,श्याम हमारे बीच , प्रीति हमारी मोल ले,छीन रही चितचोर । प्रेम नयन न झपकि रहें,ठान करें अब रार, गोपिन संग रास करत,मुरली करत विभोर । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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कृष्ण जन्मोत्सव
आधार छंद – दोहा समांत – आर (अपदांत) सुत सेवक वसुदेव के,कहते नंद कुमार । जननी न्यारी देवकी,यशुमति करें दुलार ।। धन्य धन्य हे मात द्वै,धन्य गोकुला ग्राम । कहलाये तुम नंद सुत,गोपिन के आधार ।। बड़भागी वह बंसरी, अधर धरे श्रीधाम, ठुमकि सजावे पैजनी,श्रीधर पाँव पखार ।। धेनु ,सखा,नवनीत के,बिना न सोहें नाथ शीश धरे पंँख मोर छवि,नैनन के शृंगार ।। विरहनि मीरा श्याम की,मान करे वह दासि संग सोहती राधिका, प्रेम बसे नित द्वार ।। डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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याद आओ न तुम
आधार छंद – वाचिक स्त्रग्विणी मापनी- 212 212 212 212 गालगा गालगा गालगा गालगा समान्त-आओ,पदान्त-न तुम [ गीतिका ] दूर रहकर भले याद आओ न तुम । पर मिलन की अनल यों बुझाओ न तुम । गर्व तुम पर रहे मान करती रहूँ, नैन से जल किसी के गिराओ न तुम । लेखनी हो तुम्हीं कर्म की सारथी, दर्प मन में कभी तुच्छ लाओ न तुम। धीर गंभीर लेखन प्रखर भावना, संग चलती रहो पथ दिखाओ न तुम । नित महकती रहो फूल बन कर वहाँ, रूठती वादियों मान जाओ न तुम । यान अभियान आकाश तक ज्यों बढ़ा , चूम लो हर शिखर पग बढ़ाओ न तुम । कम…
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मौन रहेंगे
आधार छंद – रोला मात्रा विधान – 11+13= 24 समान्त-एंगे,पदान्त-मौन रहेंगे गीतिका पानी पानी मान,बहेंगे मौन रहेंगे । छलके अधजल ज्ञान,सुनेंगे मौन रहेंगे । नयन निहारे शून्य,तकेंगे मौन रहेंगे । पथराये ये नैन, गलेंगे मौन रहेंगे । —————————– विछुड़े जीवन साज,नींदिया बैरन छलती, पनघट सूना श्याम, मिलेंगे मौन रहेंगे । बढ़ा नहीं जो चीर,अस्मिता कौन बचाता, सुने न कोई मर्म, छलेंगे मौन रहेंगे । चूनर देते दाग, गिद्ध कुरंग कुविचारी , घूम रहा हैवान, हँसेंगे मौन रहेंगे । करें वार पर वार,लूटते अस्मत,घाती, झूठ खेलता दाँव,सहेंगे मौन रहेंगे । सत्य करे विश्राम,प्रेम दु:खी मन हारा। डग-मग होते पाँव, गिरेंगे मौन रहेंगे । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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संदेश
आधार छंद – सुमेरु मापनी 1222 1222 122 गीतिका —— धरा को पाप का संगम बनाया । अरे ! मानव न तू अब भी लजाया । रही यह राम की धरती जहाँ पर, अनैतिक कर्म को प्रतिदिन बढ़ाया । मधुर बंसी न मोहन अब सुनाते , नहीं घनश्याम जैसा मित्र पाया । विधर्मी कर रहे जीवन भयावह, कहाँ हो शिव गरल जिसमें समाया । विकल वसुधा लगी है आग चहुँ दिक, तुम्हारा आगमन सावन सुहाया । रहा अवशेष जो उसको बचा लो, सदा से स्नेह ने दीपक जलाना । बहाओ प्रेम की गंगा तनिक तुम, मिलेगा पुण्य यदि हमने कमाया । डॉ प्रेमलता त्रिपाठी
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नयन से ढही है —-
गीतिका – मापनी – 2122 2122 122 समांत – अही पदांत – है पीर आँसू बन नयन से ढही है । अंग यह जीवन मरण तक रही है। सत्य निश्चल है मही पर सदा से , गाँव बसता जो असत का नही है। स्वप्न खिलते हैं उसी के धरा पर, जो मिटाकर अंध बढ़ता सही है। कर्म पावन जो अनागत सजाये, चैन से सुख नींद सोया वही है । ज्वार उठते प्रेम करुणा जहाँ पर, प्रीति नित मकरंद बनकर बही है। डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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करुणा नयन हे नाथ
छंद – हरिगीतिका (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- 2212 2212 2212 2212 अथवा- गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा समान्त — आते, पदांत – क्यों नही गीतिका करुणा नयन हे नाथ अब अपना बनाते क्यों नहीं ? माया हठी बढ़ती रही उसको मिटाते क्यों नहीं ? बनते रहे अनजान जगसे देख पीड़ित जन सदा, सागर शयन अब त्याग भगवन आज आते क्यों नहीं ? छलनी किया है दुर्जनों ने स्वार्थ भावों के लिए, आँधी चली है वेग से रस बूंद लाते क्यों नहीं ? सत मार्ग को छोड़ें नहीं है भावना रखना हृदय, भ्रमजाल नित अपवाद से जग को बचाते क्यों नहीं ? कटु कीट दीमक कर रहे हत खोखली दीवार को, लोभी कृपण…