
अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी ।
#गीत
कोर भीगे नयन भर रही आँजुरी………
राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी।
अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी ।
गाँव गोकुल गली गागरी भूलकर,
साधिका वन फिरे पथ बिछे शूलपर।
श्याम रंग में रँगी चूनरी श्यामला,
प्रीत रुनझुन बजे बावरी-माधुरी ।
राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी ——-
अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी ।
पीर मन की भुला दो सखे श्याम जी,
पा सकूँ मान धन प्रेम श्री धाम जी।
साथ तेरा मिले बंदगी ये रहे,
कोर भीगे नयन भर रही आँजुरी ।
राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी ———
अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी ।
मान ले तू अगर प्रेम मीरा बनूँ,।
जग हँसेगा हँसे मीत धीरा बनूँ।
चैन मन की हरे विष भरी बोलियाँ,
चाक पर मैं चढूँ घूमती जा धुरी ।
राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी ——-
अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी ।

