सींच दे आरोह को
छंद गीतिका
मापनी : 2122,2122,2122,212
मुक्तक—-
जी रहा हर व्यक्ति क्यों कर,दर्द लेकर द्रोह को ।
कर्म सुंदर साथ हो तू, छोड़ माया मोह को ।
सारथी बन कर मिलेगें,श्याम सुंदर आज भी,
शोध जागृत कर सयाने, मूल में संदोह को ।
गंध चंदन भाव अर्पण, की जरूरत हैं यहाँ,
दो महकने नित्य जीवन,खो न देना छोह को ।
दुख निराशा की घडी़ में,भोर बन कर जागना,
एक दूजे के लिए बन,राह संबल टोह को ।
दर्द को कह अलविदा तू,मीत मेरे इस समय,
प्रेम की जो बेल उसको,सींच दे आरोह को ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी