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समय न गँवायें
छंद-द्विगुणित- गंग (सम मात्रिक) शिल्प विधान- मात्रिक भार =9,9 =18 गीतिका— पीडा़ जगायें, न दीन सतायें । करुणा नयन ये,आँसू बहायें । साहस भरें दम,पूजा फलेगी, पग-पग सदा हम,मिलकर बढा़यें । घातक गरीबी,व्याकुल करे मन, विपदा कटेगी,अजान मिटायें । आयी चीन से,आफत करोंना करनी सुरक्षा,समय न गँवायें । कानून अपना,अंधा न बहरा, असत्य बुराई, न शीश उठायें । मुस्कान अपनी,यूँ खो रही क्यों, हँसती बहारें, फिर द्वार आयें । अंतस सँवारे,हो प्रेम पुष्पित, क्यों पाप धोने, गंगा नहायें । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी