-
तम की शिलाएँ
गीतिका — गहन तम की शिलाएँ तोड़कर मुझको गिरानी है । हमेशा रश्मियाँ आयें वही तो भोर लानी है । किरण के रंग बादल पर उकेरूँगी सदा अभिनव खिलेंगे फूल राहों में लिए नूतन कहानी है । मिटेगें खार क्रंदन भी,समय की अटपटी चालें भले हो दूर मंजिल भी नयी राहें बनानी है । दिया तल में अँधेरा हो सदा यह मान बैठे हम, कथा आँसू कहेंगे यह कहानी बेजुबानी है। विवशता में जिया करते छलें क्यों श्वांस अपनों की, रुलाया है बहुत तुमने दुखों की अब रवानी है । ऋचाएँ प्रेम की कब तक रहेंगी सुप्त तन मन में, उजाले गीत बनते जो वही कविता सुनानी है । डॉ.…
-
शहीदों को नमन
छंद – आल्ह [ गीतिका ] मात्रा = 31,16,15पर यति समांत – आल – अपदांत शहीदों को नमन शांत नहीं अब शोणित होगा,संग हमारे होगा काल । छलनी करना सीना अरि का,ध्वस्त मनोबल हो हर हाल । शब्द शब्द कवि चंद सरीखे,जोश होश है लेना खींच, शत्रु विनाश संकल्प हमारा,अरि का करना क्रिया कपाल । आत्मघात का खेल खेलते,छीन रहे रातों की नींद, नींद न अरि को लेने देंगे,जाग चुके हैं अपने लाल । भूल नहीं सकता है अपना,देश सपूतों के बलिदान, शरण सपोलों को देते जो,नहीं बनेंगे उनकी ढाल । व्यर्थ न जाने देंगे हम सब,कमर तोड़ना होगा पाक, क्षम्य नहीं अपराधी हैं जो,शर्मनाक यह उनकी चाल । माँ…
-
गूँजती पद चाप
गीतिका —- गूँजती पद चाप जो उर में समाते तुम रहे । राग की रोली बिखेरे पथ दिखाते तुम रहे । शून्य अधरों पर हया मुस्कान बन कर छा गयी, प्यास जन्मों के विकल मन की बुझाते तुम रहे। कंटकों में राह तुमने ही बनायी दूर तक, फूल बनकर श्वांस में यों पास आते तुम रहे । लौट आओ हर खुशी तुमसे जुड़ी हैआस भी, धूप की पहली किरण बनकर सजाते तुम रहे । हो हृदय नायक इशा विश्वास भी तुमसे सभी , स्वप्न सारे पूर्ण हों राहें बनाते तुम रहे। जल रहा मन द्वेष से हर पल विरोधी सामना, मूल्य जीवन का सतत यों ही सिखाते तुम रहे ।…
-
माँ शारदे को नमन
छंद- विधाता मापनी – 1222,1222,1222,1222 समांत – आओ, पदांत – तुम माँ शारदे को नमन —– हृदय कोमल तुम्हारा माँ सदा करुणा बहाओ तुम। जगे कुछ भाव नूतन अब,सरस वीणा सुनाओ तुम। नहीं पीड़ा सही जाती,मचा है द्वंद्व अपनों में, सुपथ पर हम चलें मिलकर,नहीं मतभेद लाओ तुम। बढ़ी आशा बजट से जो,हृदय मंथन सभी के है। कहीं खेती,युवाओं की,दुराशा को मिटाओ तुम । नहीं हो दीन अब कोई,मिले अधिकार सब को ही, बड़ी चिंताजनक होती,गरीबी दूर हटाओ तुम । चलन कुछ इस तरह बदलो,सभी दुर्भाव मिट जाये, उदासी सब नयन से चुन,फलक सुंदर सजाओ तुम । नहीं है डूबती आशा,भले मँझधार हो नौका, यही हो कामना अपनी,सतत दृढ़ता बढ़ाओ…
-
“बजट आया “
! बजट आया ! है दशा कैसी हमारे देश की । क्या कहेंगे हम कथा परिवेश की । आम हो या खास मंथन हो रहा, लाभ किसको है मिला आवेश की। है जवानों या किसानों की मदद, हम करें पूँजी कहाँ निविशेष की । दंभ भरते हैं सदा हम भारती, अर्थ जीवन रह गया अनिमेष की । है नहीं चिंतन गरीबी दीन का, छीन करते वे निवाले क्लेश की । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी