-
“प्यारी लोरी गीत बनी”
#गीत गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । आज बहुत ही खुश हूँ प्रियवर,तुम मेरे सपने में आये। हीरा माणिक अंक सजाकर, तुम को पाया आँचल में । बिछुड़े थे हम कहाँ तुम्हारे, बहकर गाते काजल में । आँख ढरे सुरमा सुषमा से,बूँद जहाँ गलने में आये। गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । प्यारी लोरी गीत बनी जब, माँ की गोदी गुलजार हुई । दो नयनों की दूरी जैसे – अब कोरों के अनुसार हुई । इतनी यादें कहाँ समेटूँ, प्रात सहज जगने में आये। गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । जोड़ दिया अपना हमसाया, नेह सजल नित अरमानों…
-
“कहाँ संँजोये जोगन”
#गीत अरी बावरी पथ में बैठी,अपलक किसे निहारे । पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । रीत रही मन की गागर ये,मधुशाला जीवन की, खोज रहा हिय सार जगत में,बीते अपने पन की उन बिन ये शृंगार सखी जी,सूना सावन-भादौ, विरह प्रीति अनजान पथिक से,कोर भिगोते खारे । पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । घन घननाद करे उन्मादी,नदिया बहती धारा । छलतीं हिय में कोरी बतियाँ,दिन में देखूँ तारा । सखी लुभाये चंद्र चकोरी,किस्से इनके अनगिन, मिलन विरह की पीर निगोड़ी,अपनों से ही हारे। पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । लता प्रेम की सींच रहे ये,धीर नयन के अंजन। दाँव पेंच सब लाज धरम को,कहाँ…
-
“धर्म नीति भावों की सरिता”
#गीत जल में थल में धरा गगन में,तुम बिन कौन सँवारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मरकत मणिमय निहित सरोवर, किरण प्रभा छवि गुंफित । सुखद सलोनी आभा अविरल, पात-पात पर टंकित। निखर उठा है पंकिल तन ये,मुकुलित नैन निहारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मीन उलझती रही निरापद, शैवालों में खेले । सरसिज काया मदमाती यों, अगणित बाधा झेले। सतह-सतह पर कुटिल मछेरे,बगुले हिय के कारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । लता सीख देती ये कणिका, मन को करें न दूषित। धर्म नीति भावों की सरिता, निश्चित होगी भूषित । नया सबेरा फिर-फिर आये, कर्मठ मंत्र उचारे…
-
‘राज इसका कहें आज किससे’
#गीत प्रीति सरगम लुभाती बहुत है। मृत्यु अंतस दुखाती बहुत है। राज इसका कहें आज किससे, बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— छद्म दुनिया करे तो जले मन । खोट मन की छुपाता रहे तन । धर्म के काज में भी कुटिलता, नित तृष्णा के छाये रहे घन । घूमती स्वार्थ घाती बहुत है । बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— प्राण पिंजर बँधा जानते जो। हाथ मलते गया मानते जो । शाम ढलती कहें उम्र की हम, चादरें यों सदा तानते जो । साँझ ऐसी रुलाती बहुत है । बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— है न सावन झड़ी फागुनी ये। रंग बरसा गयी जामुनी ये।…
-
साक्षी है इतिहास
“गांधी व शास्त्री जयंती पर समर्पित ————– विकट साधना संकल्पों में, सदा रहे अनुरक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज। ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज। राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त, सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******* राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, जीवट तन उद्दाम । नगर गाँव तक हथकरघों से,सबको दिया मुकाम । एक वस्त्र शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******** कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान । साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान। जप-तप की जहँ महके समिधा,भारत हुआ विभक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा…
-
परम पुनीता हिन्दी अपनी
✍️ #गीत पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी ही मंथन चिंतन में, करिए सदा निवेश । व्यास पराशर अंगिरादि भृगु,शतानंद सत चित्र, जहँ पुलस्त्य अगस्त्य सुचित हों,नारद विश्वामित्र । ऋषि जमदग्नि आशीष से है, पूर्ण शुद्ध परिवेश, पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी का विस्तार जहाँ से,भरत भूमि है धन्य । परम पुनीता हिन्दी भाषा,मानक मिले न अन्य । पूरब से ये सोन चिरैया, लेकर उगे दिनेश, पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । कर्म भूमि अपनी अवतारी, धर्म धरा सम व्योम, मनु जीवन ये प्रभु की रचना,हर्षित करती लोम । सत्य शील गीर्वाण अधर से, देती है संदेश, पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश ।…
-
छंद – माधव मालती
#गीत भूल कोई हो न दाता, राह तुम मुझको दिखाना । स्वप्न देखें ये नयन जो,ध्यान रख उसको सजाना । संग रहती चाहतें जब – डूब कर माँगे किनारा । शुष्क होते लोचनों में – पीर करुणा का सहारा । क्यों करें अपना-पराया,तुम शरण अपनी बुलाना । स्वप्न देखें ये नयन जो,ध्यान रख उसको सजाना । हो न गर्वित मान पाकर, साथ दे अपना न साया । कर रही है सत्य जग को, मुग्ध तन करती #अनाया। साधना के पथ न छूटे, मंत्र साधक तुम बनाना । स्वप्न देखें ये नयन जो,ध्यान रख उसको सजाना । बाड़ काँटों की लगाकर, अंध स्वारथ हिय न भाये । कंठ तक मद में…
-
सत्य सनातन
#गीत #सत्यसनातन सत्य सनातन नाम ईश का,सबके पालन हार । सनद साधना डगमग है प्रभु;हाथ गहो पतवार । हो मेरे आराध्य देव तुम, चित्तवृत्ति अविनाश । यही कल्पना युग मन्वंतर,अरि को करे निराश । भूल रहें जो वेद ऋचाएँ, वंशज हैं हम आर्य, अविनाशी को कहे सनातन,पंच तत्व में सार । सत्य सनातन नाम ईश का,सबके पालन हार । भेदभाव मतिसुप्त करें जो,क्षुद्र हृदय भयभीत। धीर धरे साधक मन मंदिर,सुखकर ये संगीत । रही सदी से मुखर चेतना, बढ़ा रहे संताप, अंश अनागत समझ न पाये,विकल नीति आधार। सत्य सनातन नाम ईश का,सबके पालन हार । महिमा करें बखान पुण्यपथ,राम-रमा अनिकेत। मर्यादा को लाँघा जिसने, दुष्ट हृदय समवेत। क्षुद्र ग्रहों…
-
“मेरा मन कुंदन कुसुमाकर”
मेरा मन कुंदन कुसुमाकर” August 2, 2023 #गीत कर देता मन को यों चंचल सागर से उठता कोलाहल ! करतीं गुहार लहरें आकर । मेरा मन कुंदन कुसुमाकर । अंग तरंगित मुखरित मेरे । तनिक निकट आओ तो टेरे । अधर चूम लो धड़के हृदतल । कर देता मन को यों चंचल ! ——- अस्ताचल सुखदा प्रियांशु को । करे नमन अभिनव सुधांशु को । पार्श्व आहटें उठती सुअंक से । खिलतीं बाँछे मिलने मयंक से । उलट-पलट भीगे तन अविरल । कर देता मन को यों चंचल ! ——- लुटा रहा निधि जलधि धीर जो । शचि आकर्षण तोड़ तीर जो । भर लेती निशि पोर-पोर है । आलिंगन…
-
#गीत – मधुर / मनोरम —————————– स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम, मधुशाला जीवन की। किस्से सुख-दुख अनगिन जिसमें, हम प्याला जीवन की । सरगम भरती वीणा समरस, श्वासों में रस घोले । स्याम रंग में लिखे लेखनी कुंज-कुंज में डोले । हँस हँस मिलना है अनंत में, जप माला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। पीड़ा मन की मुक्ता माणिक, शब्द शब्द रचवाए । जलना खपना इस दीर्घा में, मंचन जगत लुभाए । संचालक बनना तो केवल, मद हाला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। आज नहीं तो कल सच होगा, कुछ हारे कुछ जीते । खींची रेखा मिली जुली पर, कितने…