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माँ
गीतिका (12 मई अन्तराष्ट्रीय मातृ दिवस) छन्द:-द्विगुणित चौपाई 16 यति 16 आरम्भ में द्विकल+त्रिकल+त्रिकल वर्जित अन्त में गुरु अनिवार्य तन मन जीवन प्रीति सुहाती,सुख दुख करुणा प्राण लुटाती । साँसों की सरगम बन जाती,परम आत्मना माँ कहलाती । जब जब जीव धरा पर आया,अंकुर बन वह जीवन पाया, पलकें खुलते गले लगाती,परम आत्मना माँ कहलाती । शीतल होती उसकी छाया,सदा सँवारे नख शिख काया, मन को वह हरपल हर्षाती,परम आत्मना माँ कहलाती । छवि जिसकी कण कण में पाया,पंचतत्व बन देह समाया, अंक भरे जो क्षीर पिलाती,परम आत्मना माँ कहलाती । रातों की निंदिया बनजाती,भावों की लोरी हो जाती , प्रथम गुरु बन दिशा दिखाती,परम आत्मना माँ कहलाती । डॉ.प्रेमलता…
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किनारा नहीं
गीतिका- नदी वह कहाँ वेग धारा नहीं । न पतवार हाथों किनारा नहीं । बिगाड़ा तुम्हीं ने बनाना तुम्हें, यही सोच उनको गँवारा नहीं। सतत हो मनन पर लगन चाहिए, कठिन हो भले ज्ञान हारा नहीं । किरण भोर आभा जगाती सदा, अलस खो रहा दिन सँवारा नहीं । जलाया नहीं स्नेह का दीप मन में विकल श्वांस चलती सहारा नहीं । कली से कुसुम कुंज महके कहाँ, मिले जो मधुप मीत प्यारा नहीं । निभाते अगर प्रेम को मान दे, न कहते किसी ने पुकारा नहीं । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी आधार छन्द- शक्ति (मापनियुक्त वाचिक) वाचिक मापनी- १२२,१२२,१२२,१२ समान्त- आरा, पदान्त- नहीं।
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अवसाद मिटना चाहिए
गीतिका —- हो कहीं अवसाद मिटना चाहिए । दर्द का अहसास रहना चाहिए । हौसले मिलते रहें हमको सदा, स्वप्न का विस्तार करना चाहिए । देखना हमको जमाने की खुशी, त्याग अर्पण से गुजरना चाहिए। नैन कोरों से बहे करुणा दया, आह सुन मन को पिघलना चाहिए । जीत हो या हार की चिंता नहीं, कर्म बाधा से न डिगना चाहिए। भीरु कातर हो न रहना है हमें, जोश तन अंगार पलना चाहिए । प्रेम इस नश्वर जगत में सार जो, वह समय है जो सँवरना चाहिए। डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी छंद- आनंदवर्धक मापनी – 2122 2122 212 समांत – आनापदांत चाहिए
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हमकदम
छंद- आनन्द वर्धक मापनी- 2122 , 2122 , 212 समान्त -आना, पदांत- आ गया गीतिका — याद कोई जब तराना आ गया । गीत अधरों पर पुराना आ गया । गुनगुनाती शाम यों ढलती गयी, याद बीता वह जमाना आ गया। कौन जाने हम कहाँ तुम हो कहाँ, व्यर्थ यादों को भुलाना आ गया । स्वप्न हों दुस्वप्न क्यों सत्कर्म से, भाग्य अपना है जगाना आ गया । सज्ज होकर हम चलें दुविधा नहीं, दृढ़ हृदय संकल्प पाना आ गया । मार्ग बाधा हों विरोधी ताकतें, हमकदम पग को बढ़ाना आ गया । दर्प की बातें सुहाती हैं नहीं, प्रेम मधुरस में भिगाना आ गया । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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मोह गठरिया
गीतिका —– छंद – सरसी मोह गठरिया छूटे न पिया,तीरथ करूँ हजार । मेल न प्रीतम मन से मन का,व्यर्थ करूँ शृंगार । तुम्हीं बताओ दाता मेरे,ढूँढ रही दिन रात, कहाँ मिलोगे राम हमारे,पलक बिछाये द्वार । हंस नहीं मैं मानस स्वामी,क्षीर न नीर विवेक, तृषित नयन है दे दो दर्शन,जाऊँ मैं बलिहार । धर्म आड़ ले अर्थ न चाहूँ,रीति नीति के काज, अर्घ्य न पारण मन्नत अपनी,घृत न पीऊँ उधार । प्रेम रंग रस गंध स्पर्श सुख,तनिक करना मान, ढले जहाँ अर्पण में काया,सुंदर जीवन सार । डॉ प्रेमलता त्रिपाठी
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साथ अपनों का
गीतिका हृदय में तुम रहो मेरे नहीं इतना सताया कर । दुआएँ दे दवा देकर न यूँ मुझको जिलाया कर । मिला जो घाव शब्दों का नहीं भूली अभी तक मैं । सही जाती नहीं घातें नहीं बातें बनाया कर । भरोसा तोड़ कर तुमने कहाँ अच्छा किया सोचो, दिया क्यों दर्द अपनों को तनिक खुद तो लजाया कर । लगन मेरी न समझे तुम कहीं यह दर्द बन जाए, दिलासा झूठ ही देकर मुझे यों ही मनाया कर। अभी अवशेष है जीवन बहाकर प्रेम की धारा भुवन में है अभी शुभ कर्म पगअपना बढ़ाया कर । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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सजा मंच तैयारी है!!
समस्त विधा में एक रचना ———————————- छंद : मानव ( सम मात्रिक ) विधान शिल्प : 14 मात्रा / चौपाई में दो मात्रा कम गीतिका —— सजा मंच तैयारी है । देखें किसकी बारी है। खुद से खेलें घाती जो, सोच नहीं हितकारी है । मंदिर मस्जिद छाने जो, दुविधा मन में भारी है । मृत आत्मा भटक रहे जो, छिपी नहीं गद्दारी है । देख रहा स्वयं नियंता, लेकर न्याय कटारी है । लगा हुआ हित चिंतन में, संत मना अविकारी है । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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वंदेमातरम्
आधार छंद – मरहट्ठा माधवी (मापनी मुक्त मात्रिक) विधान – 29 मात्रा (चौपाई 16 मात्रा +दोहा विषम चरण 13 मात्रा) समान्त – आरा, पदांत – वंदेमातरम् गीतिका —— भूलो मत सदियों से अपना,नारा वंदे मातरम् । जग से न्यारा मन मतवाला,प्यारा वंदे मातरम् । सजी निशा है अवगुंठन में,मुखर रागिनी गा रही । खोल पलक को सरस निहारे,तारा वंदेमातरम् । किरणों के रथ बैठ दिवाकर,प्राची से संदेश दे, हुआ सबेरा कर्मठ चढ़ता,पारा वंदेमातरम् । लाजो धानी चूनर पहने,चंचल बाला सी धरा, पीत वसन से लहरे परचम,न्यारा वंदेमातरम् । प्रेम नहीं फिर कहाँ मिलेगा,मत खोना अधिकार को, अ़द्भुत मत अपना अभिमत है,द्वारा वंदेमातरम् । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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चुनाव
प्रदीप छंद आधारित —– गीतिका —- चूक नहीं करना चुनाव में,अधिमत ही मतदान है , ‘जनता का’ ‘द्वारा जनता’ के,लिए यह संविधान है । चुने नहीं हम तत्व अराजक,गणतंत्र की माँग यही, एक एक मत पड़े हमारा, धरें नीति संज्ञान है । नगर गाँव में चर्चाएँ हैं,जीत हार की होड़ में, पर विवेक जो अपना साधे,नहीं गिरेगा मान है । गलत बयानी अन देखी क्यों,मन में होता खेद जो, देना जबाब उन्हें करारा, छीने अपनी शान है । पालन रक्षण करें देश हित,मत से बदले भाग्य हम, कदम मिलाकर बढ़े प्रेम से,मताधिकार महान है। डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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उम्र दे पड़ाव नहीं
आधार-छंद : घनाक्षरी वर्णिक छंद – 16 यति 15 अंत में लघु-दीर्घ अर्थात 12 समान्त- अरने पदान्त – लगे गीतिका ——- उम्र दे पड़ाव नहीं,धूप शीत छाँव सही, दंभ मन विकार से, संत डरने लगे । पल एक मीत बनें,जीत यश गान घने, दीर्घ नहीं आयु भली, जो अखरने लगे । पुण्य प्रसून हो खिले,मधुप गान से सजे, सुषमा से छविमान, राग भरने लगे । यौवन अनमोल हों,आरक्त से कपोल हों, प्रीति पथ सँवार लें,ज्यों मुकरने लगे । चला मकरंद बान,मूक से बने अजान, रूप राशि के वितान,चित्त हरने लगे । नैन जल पखारते, विषाद मन वारते, जीवन सुहास देख, खं ठहरने लगे । कंटकों से हार नहीं,निष्ठुर कर्तार नहीं,…