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70वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई
शीर्षक ---सफर/ यात्रा / भ्रमण गीतिका --- छंद -- भुजंग प्रयात (वाचिक) मापनी --122 122 122 122 समांत - आता, पदांत - बहुत है सफर हो अकेला सताता बहुत है । तनिक फासले को दिखाता बहुत है। कहीं दूरियाँ हम मिटाने चले जो, जिसे चाहता मन रुलाता बहुत है। जहाँ पास बैठा बने अजनबी वह, मिली देख नजरें चुराता बहुत है । न यात्रा सफल बिन सहारे कहीं भी, मिलन हो क्षितिज सा सुहाता बहुत है। न मीलों थकन मीत मन का मिले जो, रसिक रागिनी बन रिझाता बहुत है । लगन साधना में यती बन चला जो, भ्रमण भोग जीवन सिखाता बहुत है । झुका कर नजर मौन देता…


