• गीतिका

    माँ शारदे को नमन

    छंद- विधाता मापनी – 1222,1222,1222,1222 समांत – आओ, पदांत – तुम माँ शारदे को नमन —– हृदय कोमल तुम्हारा माँ सदा करुणा बहाओ तुम। जगे कुछ भाव नूतन अब,सरस वीणा सुनाओ तुम। नहीं पीड़ा सही जाती,मचा है द्वंद्व अपनों में, सुपथ पर हम चलें मिलकर,नहीं मतभेद लाओ तुम। बढ़ी आशा बजट से जो,हृदय मंथन सभी के है। कहीं खेती,युवाओं की,दुराशा को मिटाओ तुम । नहीं हो दीन अब कोई,मिले अधिकार सब को ही, बड़ी चिंताजनक होती,गरीबी दूर हटाओ तुम । चलन कुछ इस तरह बदलो,सभी दुर्भाव मिट जाये, उदासी सब नयन से चुन,फलक सुंदर सजाओ तुम । नहीं है डूबती आशा,भले मँझधार हो नौका, यही हो कामना अपनी,सतत दृढ़ता बढ़ाओ…

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    “बजट आया “

    ! बजट आया ! है दशा कैसी हमारे देश की । क्या कहेंगे हम कथा परिवेश की । आम हो या खास मंथन हो रहा, लाभ किसको है मिला आवेश की। है जवानों या किसानों की मदद, हम करें पूँजी कहाँ निविशेष की । दंभ भरते हैं सदा हम भारती, अर्थ जीवन रह गया अनिमेष की । है नहीं चिंतन गरीबी दीन का, छीन करते वे निवाले क्लेश की । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    “बीड़ा उठाना”

    छंद – वाचिक भुजंगप्रयात मापनी- 122 122 122 122 समान्त – आना, अपदान्त गीतिका महकता स्वयं सत्य बीड़ा उठाना । मिले कीर्ति मन में नहीं दंभ लाना । तपें स्वर्ण बनकर निखरते तभी हम, तनिक आपदा में नहीं हार जाना। सुमन हर कली पर सजी ओस मोती, उठो संग दिनकर तुम्हें पथ सजाना । न शीतल हिना हो न चंदन महकता, महकती मनुजता इसे तुम बनाना । सजे कर्म निष्काम होते जहाँ वह, नहीं अर्थ केवल हमें हो कमाना । सजे प्रेम तन-मन कटे सार जीवन, बँधे बंधनों में हमें वे निभाना । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    क्यों ? उदास हम!

    गीतिका — मात्रा= 30 -14,16 पर यति समांत – आरे, अपदांत घनी उदासी छायी क्यों?,क्यों मन मारे बैठें हारे । खट्टी मीठी यादों की,खुशियाँ हैं जो बाँह पसारे । जहाँ तहाँ थमी हुई हैं,आशाएँ वे कदम भरे अब, उद्वेलन हो लहर लहर,एक चंद्र सौ बार उतारे । क्रम यही जीवन माने,उठते गिरते आहत सुख कर, श्वांसों में घुल मिल जाते,अंग अंग हर पोर दुलारे । आँसू मोती बन उठते,चलते चलते चरण अनथके समय समय पर बीते पल, देकर जाते बड़े इशारे । फिर नूतन करना हमको,मिटा दूरियाँ आगे बढ़ना, कुछ खोने सब पाने हित,प्रेम जलाकर दीप सँवारे । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    हिंद हिंदी हिंदुस्तान

    हिंदी दिवस पर —– समर्पित गीतिका छंद- सार समांत- अते , पदांत- जायें देश निराला अपना तन मन, अर्पण करते जायें । द्वेष नीति जो मढ़ते आकर,स्नेहिल बनते जायें । हिंद देश की भाषा हिन्दी,जननी प्रिय जन मन की, मधुर मधुर कान्हा की बंसी,रूठे मनते जायें । शिखर चमकता दिनमान यथा,जागे यह मनभावन , शब्द तरंगित हिंदी महके,राही गुनते जायें। शाम सुरमई झिल-मिल तारे,नींद पाँखुरी लेती, छिटक चंद्रिका दुलराये जब, सपनें बुनते जायें । राम कृष्ण की पुण्य भूमि यह,सुंदर अपना मधुबन, यह गौरव इतिहास हमारे, सदा महकते जायें। कटुता कर क्यों क्षार बनायें,हृदय शूल को बोकर, हिंदी हृदय विश्वास प्रेम है’,तन-मन सजते जायें । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    !!अमर शहीदों को नमन !!

    आधार छंद- वाचिक भुजंगप्रयात 122 122 122 122 मापनी- लगागा लगागा लगागा लगागा शहीदों नमन हिंद अपना सुहाना । शहादत तुम्हारी नहीं है भुलाना । कभी शीश अपना झुका जो नहीं है, नजर से नजर तुम उठा कर मिलाना । मिले मान जीवन मिटाकर कुटिलता, हमें नेक नीयत सदा है बनाना । लगे जो हया की कभी बोलियाँ तुम, हृदय ज्वाल फूटे नहीं चुप लगाना । घुटन भर रहीं राजनीतिक मिसालें, सिसक तंत्र की है हमीं को मिटाना । सजी पालकी हो धरा ओढ़ चूनर, हरित मातृ अंचल सदा तुम सजाना । शिखर भानु शुभ दिन सजाता रहेगा, नवल क्रांति लेकर हमें पग बढ़ाना । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    70वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई

    शीर्षक ---सफर/ यात्रा / भ्रमण गीतिका --- छंद -- भुजंग प्रयात (वाचिक) मापनी --122 122 122 122 समांत - आता, पदांत - बहुत है सफर हो अकेला सताता बहुत है । तनिक फासले को दिखाता बहुत है। कहीं दूरियाँ हम मिटाने चले जो, जिसे चाहता मन रुलाता बहुत है। जहाँ पास बैठा बने अजनबी वह, मिली देख नजरें चुराता बहुत है । न यात्रा सफल बिन सहारे कहीं भी, मिलन हो क्षितिज सा सुहाता बहुत है। न मीलों थकन मीत मन का मिले जो, रसिक रागिनी बन रिझाता बहुत है । लगन साधना में यती बन चला जो, भ्रमण भोग जीवन सिखाता बहुत है । झुका कर नजर मौन देता…

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