• #गीत

    “खोल झरोखे मावस चंदा”

    #गीत दिवा सजे हवि महक उठी पिय,संग शिखा पुरवाई। झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई । खोल झरोखे मावस चंदा, तमस लिए तन बागी । धरा गगन की साँठ-गाँठ में, मन का होना रागी । बैठ पुलिन पर करे प्रतीक्षा, कैसे वह हरजाई । झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई । इत आये उत जाए छलिया, आकुल मन मतवाला । गिन-गिन कर जो रात गुजारे जपकर मुक्ता माला । बंद साँकली खोले पूनम, निशा लगी गदराई । झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई । नयन थके वा लगी विछावन, पलक पाँवड़े अभिनव । नेह #लता जो छूट न पाये, सुर सजा शर्वरी रव । दमकी देहरि घर आँगन की,कली गली…

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    “धुंध दुशाले ओढ़े अंशुक”

    #गीत सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । सहज गुलाबी बिछे गलीचे,उन्नत वृक्ष चिनार के । प्रकृति पिलाती हाला मद में,झूम उठा तन बावरा, बना आशियाँ ठहर गया मन,तनिक उठा कब हार के । सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । —— पंख लगे घन हंस युगल से,खेल रहे आमोद में “धुंध दुशाले ओढ़े अंशुक”,सोती ज्यों नभ गोद में प्रीत गुहारे श्वेत श्याम में,हरषे मुकुलित नैन को, उलझे कुंचित केश लुभाए,स्वप्निल सैन बयार के । सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । —— दूर छितिज से उगी लालिमा,सतरंगी परिधान में । लोल कपोलों पर छायी जब,ताम्र वेश अवसान में । धरा गगन से अनुबंधों…

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    “युग युग से अविरल पावन”

    #गीत युग युग से अविरल पावन है,फूलों से महकी क्यारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । उजडी़ बगिया फिर खिल जाए, एक नहीं शाखें अनगिन । कली कली ले यौवन गाती, मुस्कान भरे जो पलछिन । हम करें हिमायत काँटों की,क्या है अपनी लाचारी । रही अनाधिकार शूलों की- घातक जिन पर दुश्वारी । बिखरी परवश पात-पात पर तन-मन की सुधि बेमानी । छीन रहे अम्लान हँसी जो, अन सुलझे कृत नादानी । शांत हुए क्यों देख पुरोधा,जब आयी उनकी बारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । खार मनुजता हुई धरा पर, भरती आहें अँगनाई । कल युग के काले पन्ने पर डरकर जीवै…

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    “युग युग से अविरल पावन”

    #गीत युग युग से अविरल पावन है,फूलों से महकी क्यारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक उन पर दुश्वारी । उजडी़ बगिया फिर खिल जाए, एक नहीं शाखें अनगिन । कली कली ले यौवन गाती, मुस्कान भरे जो पलछिन । हम करें हिमायत काँटों की,क्या है अपनी लाचारी । रही अनाधिकार शूलों की- घातक जिन पर दुश्वारी । बिखरी परवश पात-पात पर तन-मन की सुधि बेमानी । छीन रहे अम्लान हँसी जो, अन सुलझे कृत नादानी । शांत हुए क्यों देख पुरोधा,जब आयी उनकी बारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । खार मनुजता हुई धरा पर, भरती आहें अँगनाई । कल युग के काले पन्ने पर डरकर जीवै…

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    राधे राधे

    #राधेराधे (राधा अष्टमी को समर्पित) अपना कौन पराया जग में,स्वामी है सिरमौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे,जाना है किस ठौर । रूप धरे मायावी दुनिया, घूम रही दिन रैन । कैसी लौकिक लीला प्यारी, छीन रही मन चैन । सच है क्या तू बता राधिके, किसका है ये दौर। मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । राम नाम की सत्य पताका, अंतस भारी भेद। हरित बाँस पर झीनी चादर, मुक्ति जगत से खेद । करुणा कर हे कृष्णा, राधे,मुझे सिखा दे तौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । सुनो नागरी हिय की बतियाँ, बड़ी ठगन जग रीति ।…

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    राधे राधे

    #राधेराधे (राधा अष्टमी को समर्पित) अपना कौन पराया जग में,स्वामी है सिरमौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे,जाना है किस ठौर । रूप धरे मायावी दुनिया, घूम रही दिन रैन । कैसी लौकिक लीला प्यारी, छीन रही मन चैन । सच है क्या तू बता राधिके, किसका है ये दौर। मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । राम नाम की सत्य पताका, अंतस भारी भेद। हरित बाँस पर झीनी चादर, मुक्ति जगत से खेद । करुणा कर हे कृष्णा, राधे,मुझे सिखा दे तौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । सुनो नागरी हिय की बतिया, बड़ी ठगन जग रीति ।…

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    #गीत “कल्प रहे कल्पांत नहीं”

    #गीत मधुरस भीनी बगिया अपनी, कल्प रहे कल्पांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** सरस लगे ये दिगदिगंत देखन वाले नैन अलग । लोभी मधुकर से यदि पूछें, गुनगुन करते बैन अलग । खोकर जीवै वही साधना , इसके कुछ उपरांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** नित्य रचे जो द्वार रँगोली, स्वागत में चौखट हो । कुम कुम हल्दी अक्षत ले हँसकर खुलता जो पट हो । तुलसी के बिरवा ! चुनमुन से,अँगना चहके शांत नहीं सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** छंद रचे नव-नव विधान से, गीत नेक रचना हमको । छुपे दिव्य मन भाव…

  • गीतिका

    “कल्प रहे कल्पांत नहीं”

    #गीत मधुरस भीनी बगिया अपनी,कल्प रहे कल्पांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** सरस लगे ये दिगदिगंत देखन वाले नैन अलग । लोभी मधुकर से यदि पूछें, गुनगुन करते बैन अलग । खोकर जीवै वही साधना , इसके कुछ उपरांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** नित्य रचे जो द्वार रँगोली, स्वागत में चौखट हो । कुम कुम हल्दी अक्षत ले हँसकर खुलता जो पट हो । तुलसी के बिरवा ! चुनमुन से,अँगना चहके शांत नहीं सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** छंद रचे नव-नव विधान से, गीत नेक रचना हमको । छुपे दिव्य मन भाव सरसता,…

  • गीतिका

    “कल्प रहे कल्पांत नहीं”

    #गीत मधुरस भीनी बगिया ये, कल्प रहे कल्पांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** सरस लगे ये दिगदिगंत देखन वाले नैन अलग । लोभी मधुकर से यदि पूछें, गुनगुन करते बैन अलग । खोकर जीवै वही साधना , इसके कुछ उपरांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** नित्य रचे जो द्वार रँगोली, स्वागत में चौखट हो । कुम कुम हल्दी अक्षत ले हँसकर खुलता जो पट हो । तुलसी के बिरवा ! चुनमुन से,अँगना चहके शांत नहीं सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** छंद रचे नव-नव विधान से, गीत नेक रचना हमको । छुपे दिव्य मन भाव…

  • गीतिका

    जस नाविक के तीर

    #गीत अंतस बींधे भेद न जाने,जस नाविक के तीर । रीत जगत की मीत अमानी,होवै मना अधीर । डोर बँधी अथ नाव सँभाले, पाल तने मस्तूल । लहर लहर ये विपुला धारा, साथ चले अनुकूल । धारा के विपरीत चलाये, दुविधायें गंभीर । रीत जगत की मीत अमानी,होवै मना अधीर । सगुण चलावै निर्गुण निर्मल, लगी न बुझती आग । रूप धरे ये स्वारथ कल्मष बुद्ध नहीं अनुराग । स्वाद भरे ये रसना न्यारी,जिसमें उठे खमीर । रीत जगत की मीत अमानी,होवै मना अधीर । ज्ञान सदन की खुली किवाड़ें, कहते सकल सुजान । मन की बगिया हरित बनावें, दर्दी हरें गुमान । नीर नयन से ढलके पर हित,हर ले…

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