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आन के लिए
आधार छंद- वाचिक चामर मापनी – गालगाल गालगाल गालगाल गालगा 2121, 2121, 2121,212 समांत – आन, पदांत- के लिए गीतिका —– वार दें सु स्वप्न प्राण देश आन के लिए । गर्व है हमें अनंत शौर्यवान के लिए । वंदनीय हैं शहीद मातृभूमि के सदा, धन्य ये शहादतें धरा महान के लिए । जागिए सुजान ये धरा पुकारती हमें । राज नीति की बिसात है न मान के लिए । हेकड़ी जमा रहे विकार युक्त लोग जो, स्वार्थ में जुटे वही न मर्म ज्ञान के लिए। टूटता समाज है कुरीतियाँ फसाद से , मीत एक हों सभी बढ़े निदान के लिए । बूँद बूंद रक्त में प्रवाह देश प्रेम हो…
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रंगों की विविधा है जीवन
आधार छंद – लावणी मात्रा = 30 – 16,14 पर यति समांत – आने पदांत – से गीतिका —— रंगों की विविधा है जीवन, सजते ये अपनाने से । छाप छोड़ता कर्म हमारा, अपने रंग जमाने से । जहाँ तहाँ बिखरीं हैं खुशियाँ,ढूँढ उन्हें फिर लाना है, जब तब मौके मिलते हमको,मिलकर कदम बढ़ाने से । पलक झपकते बीत रहा पल,आओ उन्हें सँवारे हम, कम क्यों आँके क्षमताओं को,,बात बने समझाने से । दूर विजन कानन भी बोले,चटक चिरैया चुन मुन सी, सूरज अपने पाहुन लगते, सपने नैन जगाने से । जीवन एक खिलौना जिसमें,चाभी भरना प्रतिपल है, समता लायें सुख दुख में हम,हँसकर उसे बिताने से । रात सितारे…
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तम की शिलाएँ
गीतिका — गहन तम की शिलाएँ तोड़कर मुझको गिरानी है । हमेशा रश्मियाँ आयें वही तो भोर लानी है । किरण के रंग बादल पर उकेरूँगी सदा अभिनव खिलेंगे फूल राहों में लिए नूतन कहानी है । मिटेगें खार क्रंदन भी,समय की अटपटी चालें भले हो दूर मंजिल भी नयी राहें बनानी है । दिया तल में अँधेरा हो सदा यह मान बैठे हम, कथा आँसू कहेंगे यह कहानी बेजुबानी है। विवशता में जिया करते छलें क्यों श्वांस अपनों की, रुलाया है बहुत तुमने दुखों की अब रवानी है । ऋचाएँ प्रेम की कब तक रहेंगी सुप्त तन मन में, उजाले गीत बनते जो वही कविता सुनानी है । डॉ.…
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शहीदों को नमन
छंद – आल्ह [ गीतिका ] मात्रा = 31,16,15पर यति समांत – आल – अपदांत शहीदों को नमन शांत नहीं अब शोणित होगा,संग हमारे होगा काल । छलनी करना सीना अरि का,ध्वस्त मनोबल हो हर हाल । शब्द शब्द कवि चंद सरीखे,जोश होश है लेना खींच, शत्रु विनाश संकल्प हमारा,अरि का करना क्रिया कपाल । आत्मघात का खेल खेलते,छीन रहे रातों की नींद, नींद न अरि को लेने देंगे,जाग चुके हैं अपने लाल । भूल नहीं सकता है अपना,देश सपूतों के बलिदान, शरण सपोलों को देते जो,नहीं बनेंगे उनकी ढाल । व्यर्थ न जाने देंगे हम सब,कमर तोड़ना होगा पाक, क्षम्य नहीं अपराधी हैं जो,शर्मनाक यह उनकी चाल । माँ…
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गूँजती पद चाप
गीतिका —- गूँजती पद चाप जो उर में समाते तुम रहे । राग की रोली बिखेरे पथ दिखाते तुम रहे । शून्य अधरों पर हया मुस्कान बन कर छा गयी, प्यास जन्मों के विकल मन की बुझाते तुम रहे। कंटकों में राह तुमने ही बनायी दूर तक, फूल बनकर श्वांस में यों पास आते तुम रहे । लौट आओ हर खुशी तुमसे जुड़ी हैआस भी, धूप की पहली किरण बनकर सजाते तुम रहे । हो हृदय नायक इशा विश्वास भी तुमसे सभी , स्वप्न सारे पूर्ण हों राहें बनाते तुम रहे। जल रहा मन द्वेष से हर पल विरोधी सामना, मूल्य जीवन का सतत यों ही सिखाते तुम रहे ।…
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माँ शारदे को नमन
छंद- विधाता मापनी – 1222,1222,1222,1222 समांत – आओ, पदांत – तुम माँ शारदे को नमन —– हृदय कोमल तुम्हारा माँ सदा करुणा बहाओ तुम। जगे कुछ भाव नूतन अब,सरस वीणा सुनाओ तुम। नहीं पीड़ा सही जाती,मचा है द्वंद्व अपनों में, सुपथ पर हम चलें मिलकर,नहीं मतभेद लाओ तुम। बढ़ी आशा बजट से जो,हृदय मंथन सभी के है। कहीं खेती,युवाओं की,दुराशा को मिटाओ तुम । नहीं हो दीन अब कोई,मिले अधिकार सब को ही, बड़ी चिंताजनक होती,गरीबी दूर हटाओ तुम । चलन कुछ इस तरह बदलो,सभी दुर्भाव मिट जाये, उदासी सब नयन से चुन,फलक सुंदर सजाओ तुम । नहीं है डूबती आशा,भले मँझधार हो नौका, यही हो कामना अपनी,सतत दृढ़ता बढ़ाओ…
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“बजट आया “
! बजट आया ! है दशा कैसी हमारे देश की । क्या कहेंगे हम कथा परिवेश की । आम हो या खास मंथन हो रहा, लाभ किसको है मिला आवेश की। है जवानों या किसानों की मदद, हम करें पूँजी कहाँ निविशेष की । दंभ भरते हैं सदा हम भारती, अर्थ जीवन रह गया अनिमेष की । है नहीं चिंतन गरीबी दीन का, छीन करते वे निवाले क्लेश की । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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“बीड़ा उठाना”
छंद – वाचिक भुजंगप्रयात मापनी- 122 122 122 122 समान्त – आना, अपदान्त गीतिका महकता स्वयं सत्य बीड़ा उठाना । मिले कीर्ति मन में नहीं दंभ लाना । तपें स्वर्ण बनकर निखरते तभी हम, तनिक आपदा में नहीं हार जाना। सुमन हर कली पर सजी ओस मोती, उठो संग दिनकर तुम्हें पथ सजाना । न शीतल हिना हो न चंदन महकता, महकती मनुजता इसे तुम बनाना । सजे कर्म निष्काम होते जहाँ वह, नहीं अर्थ केवल हमें हो कमाना । सजे प्रेम तन-मन कटे सार जीवन, बँधे बंधनों में हमें वे निभाना । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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क्यों ? उदास हम!
गीतिका — मात्रा= 30 -14,16 पर यति समांत – आरे, अपदांत घनी उदासी छायी क्यों?,क्यों मन मारे बैठें हारे । खट्टी मीठी यादों की,खुशियाँ हैं जो बाँह पसारे । जहाँ तहाँ थमी हुई हैं,आशाएँ वे कदम भरे अब, उद्वेलन हो लहर लहर,एक चंद्र सौ बार उतारे । क्रम यही जीवन माने,उठते गिरते आहत सुख कर, श्वांसों में घुल मिल जाते,अंग अंग हर पोर दुलारे । आँसू मोती बन उठते,चलते चलते चरण अनथके समय समय पर बीते पल, देकर जाते बड़े इशारे । फिर नूतन करना हमको,मिटा दूरियाँ आगे बढ़ना, कुछ खोने सब पाने हित,प्रेम जलाकर दीप सँवारे । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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हिंद हिंदी हिंदुस्तान
हिंदी दिवस पर —– समर्पित गीतिका छंद- सार समांत- अते , पदांत- जायें देश निराला अपना तन मन, अर्पण करते जायें । द्वेष नीति जो मढ़ते आकर,स्नेहिल बनते जायें । हिंद देश की भाषा हिन्दी,जननी प्रिय जन मन की, मधुर मधुर कान्हा की बंसी,रूठे मनते जायें । शिखर चमकता दिनमान यथा,जागे यह मनभावन , शब्द तरंगित हिंदी महके,राही गुनते जायें। शाम सुरमई झिल-मिल तारे,नींद पाँखुरी लेती, छिटक चंद्रिका दुलराये जब, सपनें बुनते जायें । राम कृष्ण की पुण्य भूमि यह,सुंदर अपना मधुबन, यह गौरव इतिहास हमारे, सदा महकते जायें। कटुता कर क्यों क्षार बनायें,हृदय शूल को बोकर, हिंदी हृदय विश्वास प्रेम है’,तन-मन सजते जायें । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी