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राह दिखाओ
गीतिका — आधार छंद- बिहारी मापनी- गागाल लगागाल लगागाल लगागा 221 1221 1221 122 या, 2211 2211 2211 22 समान्त- आओ, अपदांत शुभ प्रात नमन ईश करो ध्यान लगाओ । खिल गात उठे योग सधे स्वस्थ बनाओ । संधान करो नित्य पहुँच ज्ञान शिखर तक आवाज युवा क्रान्ति बनों देश जगाओ । अभियान नवल वेग भरो दर्प मिटा कर, बन सूर्य किरण संग चलो राह दिखाओ । संदेश सदा सत्य अटल मार्ग चुनो तुम, हो व्योम सदृश उच्च सपन नैन सजाओ । क्यों दोष सदा भाग्य कहें कर्म जगत में, मत व्यर्थ करो प्राण यतन मीत लजाओ । हठ द्वंद सदा दूर करो मर्म समझ कर, विश्वास सरस प्रेम भरा…
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बादल
गीतिका —- आधार छंद — वाचिक जतरगा मापनी — 12122 12122 समान्त – आरपदांत – बादल बिखर रही जो निखार बादल । उलझ गयी जो सँवार बादल । नयन निहारे पलक बिछाये । मयंक पहले उतार बादल । न चाँदनी का पता कहीं है, न चैन आये करार बादल । विहाग गाता चला पथिक जो, विहग बसेरा उजार बादल । लगे अमावस घिरा सकल हो, बिखेर तारे हजार बादल । सप्रेम गलियाँ महक उठेंगी, निकाल मन का गुबार बादल । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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मेघ मनुहार
गीतिका आधार छंद — वाचिक जतरगा मापनी — 12122 12122 समान्त – आरपदांत – बादल सुनो धरा की पुकार बादल । किसान का हित विचार बादल । बुझा सके प्यास जो नहीं अब, हृदय किसी का उदार बादल । छिपी न तुमसे व्यथा जगत की, विकल भरा मन गुबार बादल । धरा सजेगी विकास होगा, भरो सुखद तुम फुहार बादल । महक उठेगी प्रफुल्ल क्यारी, तुम्हीं बुलाते बयार बादल । न आँसुओं की लड़ी सुहाती, दुखी मनुजता सँवार बादल । प्रलय न आए उदास मन है, मधुर बजा दो सितार बादल सुमन सरोवर सुहास देना, सप्रेम बरखा बहार बादल । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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जीवन
गीतिका आधारछंद – राधेश्यामी16,16 पर यति समांत – आना, पदांत – है । जीवन है काँटों का झुरमुट, क्या उलझ हमें रह जाना है। पथ के सारे काँटे चुनचुन, उसको अब सुगम बनाना है। कैसी मन की कटुता भाई, क्यों मन भेद धरें आपस में । इक दिन जाना ही है सबको,अपनों का मिला खजाना है । है सात सुरों का सरगम जो,संगम ये सुर लय तालों का । तार हृदय के जोड़ रहे हम, कविता तो एक बहाना है । छ: ऋतुओं का अपना वैभव,सरस बनाते जन जीवन को। रखकर वाणी सरस कोकिला, भावों कोे नित्य सजाना है। उपवन मे जब सुमन खिलेंगे,मन मयूर लेगा अँगड़ाई। घन देख पपीहा…
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जीवन
गीतिका आधारछंद – राधेश्यामी16,16 पर यति समांत – आना, पदांत – है । जीवन है काँटों का झुरमुट, क्या उलझ हमें रह जाना है। पथ के सारे काँटे चुनचुन, उसको अब सुगम बनाना है। कैसी मन की कटुता भाई, क्यों मन भेद धरें आपस में । इक दिन जाना ही है सबको,अपनों का मिला खजाना है । है सात सुरों का सरगम जो,संगम ये सुर लय तालों का । तार हृदय के जोड़ रहे हम, कविता तो एक बहाना है । छ: ऋतुओं का अपना वैभव,सरस बनाते जन जीवन को। रखकर वाणी सरस कोकिला, भावों कोे नित्य सजाना है। उपवन में जब सुमन खिलेंगे,मन मयूर लेगा अँगड़ाई। घन देख पपीहा…
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माँ
गीतिका (12 मई अन्तराष्ट्रीय मातृ दिवस) छन्द:-द्विगुणित चौपाई 16 यति 16 आरम्भ में द्विकल+त्रिकल+त्रिकल वर्जित अन्त में गुरु अनिवार्य तन मन जीवन प्रीति सुहाती,सुख दुख करुणा प्राण लुटाती । साँसों की सरगम बन जाती,परम आत्मना माँ कहलाती । जब जब जीव धरा पर आया,अंकुर बन वह जीवन पाया, पलकें खुलते गले लगाती,परम आत्मना माँ कहलाती । शीतल होती उसकी छाया,सदा सँवारे नख शिख काया, मन को वह हरपल हर्षाती,परम आत्मना माँ कहलाती । छवि जिसकी कण कण में पाया,पंचतत्व बन देह समाया, अंक भरे जो क्षीर पिलाती,परम आत्मना माँ कहलाती । रातों की निंदिया बनजाती,भावों की लोरी हो जाती , प्रथम गुरु बन दिशा दिखाती,परम आत्मना माँ कहलाती । डॉ.प्रेमलता…
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किनारा नहीं
गीतिका- नदी वह कहाँ वेग धारा नहीं । न पतवार हाथों किनारा नहीं । बिगाड़ा तुम्हीं ने बनाना तुम्हें, यही सोच उनको गँवारा नहीं। सतत हो मनन पर लगन चाहिए, कठिन हो भले ज्ञान हारा नहीं । किरण भोर आभा जगाती सदा, अलस खो रहा दिन सँवारा नहीं । जलाया नहीं स्नेह का दीप मन में विकल श्वांस चलती सहारा नहीं । कली से कुसुम कुंज महके कहाँ, मिले जो मधुप मीत प्यारा नहीं । निभाते अगर प्रेम को मान दे, न कहते किसी ने पुकारा नहीं । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी आधार छन्द- शक्ति (मापनियुक्त वाचिक) वाचिक मापनी- १२२,१२२,१२२,१२ समान्त- आरा, पदान्त- नहीं।
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अवसाद मिटना चाहिए
गीतिका —- हो कहीं अवसाद मिटना चाहिए । दर्द का अहसास रहना चाहिए । हौसले मिलते रहें हमको सदा, स्वप्न का विस्तार करना चाहिए । देखना हमको जमाने की खुशी, त्याग अर्पण से गुजरना चाहिए। नैन कोरों से बहे करुणा दया, आह सुन मन को पिघलना चाहिए । जीत हो या हार की चिंता नहीं, कर्म बाधा से न डिगना चाहिए। भीरु कातर हो न रहना है हमें, जोश तन अंगार पलना चाहिए । प्रेम इस नश्वर जगत में सार जो, वह समय है जो सँवरना चाहिए। डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी छंद- आनंदवर्धक मापनी – 2122 2122 212 समांत – आनापदांत चाहिए
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हमकदम
छंद- आनन्द वर्धक मापनी- 2122 , 2122 , 212 समान्त -आना, पदांत- आ गया गीतिका — याद कोई जब तराना आ गया । गीत अधरों पर पुराना आ गया । गुनगुनाती शाम यों ढलती गयी, याद बीता वह जमाना आ गया। कौन जाने हम कहाँ तुम हो कहाँ, व्यर्थ यादों को भुलाना आ गया । स्वप्न हों दुस्वप्न क्यों सत्कर्म से, भाग्य अपना है जगाना आ गया । सज्ज होकर हम चलें दुविधा नहीं, दृढ़ हृदय संकल्प पाना आ गया । मार्ग बाधा हों विरोधी ताकतें, हमकदम पग को बढ़ाना आ गया । दर्प की बातें सुहाती हैं नहीं, प्रेम मधुरस में भिगाना आ गया । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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मोह गठरिया
गीतिका —– छंद – सरसी मोह गठरिया छूटे न पिया,तीरथ करूँ हजार । मेल न प्रीतम मन से मन का,व्यर्थ करूँ शृंगार । तुम्हीं बताओ दाता मेरे,ढूँढ रही दिन रात, कहाँ मिलोगे राम हमारे,पलक बिछाये द्वार । हंस नहीं मैं मानस स्वामी,क्षीर न नीर विवेक, तृषित नयन है दे दो दर्शन,जाऊँ मैं बलिहार । धर्म आड़ ले अर्थ न चाहूँ,रीति नीति के काज, अर्घ्य न पारण मन्नत अपनी,घृत न पीऊँ उधार । प्रेम रंग रस गंध स्पर्श सुख,तनिक करना मान, ढले जहाँ अर्पण में काया,सुंदर जीवन सार । डॉ प्रेमलता त्रिपाठी