• गीतिका

    “अनचाहे कुछ अनुबंधन”

    #गीत सागर सम्मत रत्न समेटे,मन में भी गहराई है । अनदेखी अपनों से होती,रोती तब तनहाई है। मृगमरीचिका जीव बढा़ए, अर्थ सहित करिए मंथन । जोगन काया भोग रही है, अनचाहे कुछ अनुबंधन । साँस हिया में हलचल करती,चार दिवस पहुनाई है । अनदेखी अपनों से होती,रोती तब तनहाई है । रिश्ते जोडे़ नये पुराने , नहीं लगे पलछिन दिलकश । साथ चले कब चंद कदम ये, उलझन करती है परवश। लगा कहकहे हँसती मद में,कैसी ये तरुणाई। अनदेखी अपनों से होती,रोती तब तनहाई है। दर्द दिलों की बाँट सकेंगे, समय कसौटी पर तुलकर । रंगों की विविधा है जीवन जीते हैं हम जब घुलकर । “लता” प्रेम की खिले…

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    “नील गगन है मौन हुआ”

    गीतिका — रंग बिखेरे इंद्रधनुष नभ,सरस लगा तन मन को । सप्त रंग ये अभ्र निकष पर,सजा रहा उपवन को । जहाँ भरे मृग-दाव कुलाँचे, छौने बादल बनकर, नील गगन है मौन हुआ खुद,देखे मुग्ध सदन को । विमल प्रीत ये धरा गगन की, मधुरस कलश भरी जो, मिलन यही नव क्षितिज उकेरे,लुभा रही जन-जन को । बुला रही सावन को पगली,बरखा दे खुशहाली, खेत-खेत खलियान सजाये,माँग रही अनधन को । प्रेम शांति का नारा लेकर,प्रतिपल हो सुखदायक, सुखद सबेरा फिर फिर आये,मिटा सकल उलझन को । ********************डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    कजरी

    #गीत (कजरी ) सखी महक उठी ज्यों माटी तलाई में, चलो अगुआई में धान की रोपाई में ना — धान की रोपाई में ना — बहे पुरवा बयार चहुँ सावनी फुहार, भीगे अँचरा हमार तनी छतरी सँभार । कहे कँगन कलाई में — धान की रोपाई में ना — बीज बेरन बनाय, देत पाँतन बिछाय, धानी चूनर सुहाय,मन मन ही लुभाय । लागी गुइयाँ निराई में – धान की रोपाई में ना — कुहुक कोयली बान लगे सरस निदान, देश हित में जवान,पिया सजग किसान । औ परदेसी कमाई में धान की रोपाई में ना — ————————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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    “आस की जीत है जिंदगी”

    212,212,212 ————————- प्रीत नवनीत है जिंदगी साज संगीत है जिंदगी प्यार से मान मनुहार से, नेह का गीत है जिंदगी । वेदना, चेतना, साधना, सत्य हो रीत है जिंदगी । योग हो भोग हो मंत्र हो नित्य नवगीत है जिंदगी । प्रेम सुख सार है मानिए, आस की जीत है जिंदगी। डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    “आभार जीवन हो”

    गीतिका —- आधार छन्द – माधुरी 2212 2212 2212 22 पदान्त-जीवन हो, समान्त-आर ◆ माँ शारदे आशीष दें, अविकार जीवन हो। छलछद्म को मौका न दें,अधिकार जीवन हो । आये कहीं जो द्वार पर, भूखा नहीं लौटे, इतनी कृपा मुझ पर करें,उपकार जीवन हो । हो अर्चना अपनी सफल,मन से मिले मन यूँ, मतभेद मन के सब मिटे, त्योहार जीवन हो । अनुकूल हो कर शांत रस,दृग ज्योति भर दे माँ , माधुर्य लेखन कामना, आधार जीवन हो । माया जगत व्यापे नहीं,नैया तरेगी प्रभु, रिपुवंश का संहार कर,आभार जीवन हो । अर्पण लिए पूजा फले, संघर्ष करना हो, सच राह से मुकरें नहीं, शृंगार जीवन हो । याचक रहे…

  • गीतिका

    “माँ की ममता”

    आधार छंद सरसी मात्रा 27-16,11पर यति सामांत – आर , अपदांत गीतिका —– कविता मोहक भाव कलश है,भरते हम उदगार । मुखरित वाणी से छलके जो,करे प्रीति संचार। नख शिख वर्णन से न सजे जो,अंतस रहे अधीर, साहस और रवानी भर दे,कविता वह आधार । एकाकी मुस्कान भरे मन,सृजन सहज का साथ, नृत्य करे तन तरुवर झूमें, रसवंती जस नार । भोली सुखदा महक उठे,कोमल कलिका छंद, घुल मिल जाते कवि रचना में,डूब करें अभिसार । रहते मद में चूर सदा जो, दंभ भरें आकाश करें खोखला अंतस प्रतिफल,अंत हुए लाचार । बाधाओं को चूम प्रकृति भी, देती है मधुमास, सुख दुख के ताने बाने का,सुंदर यह उपहार । माँ…

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    “नयन झुकते समर्पण में”

    छंद- विजात मापनी- 1222 1222 समांत – ओती अपदांत दृगों में वेदना सोती । छिपे ज्यों सीप में मोती । नयन झुकते समर्पण में, हया हृद गेह में होती । बसी कटुता नयन जिसके, सदा वह शूल ही बोती । भरे मुस्कान जीवन में, कुटिलता क्यों उसे खोती । महकती प्रेम की बगिया हँसे अँखियाँ नहीं रोती । ————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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    “है मसीहा कौन”

    गीतिका मानते हैं जुर्म,का चारो तरफ है जोर अब । है मसीहा कौन देखे आँसुओं के कोर अब । अस्मिता लुटती जहाँ पर एक बारी जानिए, कर जिरह हर बार छीने हर गली हर छोर अब । कर रहे अपराध मिलकर वे सभी ये प्रति प्रहर, व्यर्थ करतें है अमानी रात काली भोर अब । भीत जनता में अदालत से निराशा जानिए , वादियों प्रति वादियों में हो रही बस शोर अब। फर्ज अपना हम निभाते गर चलें हम देश हित, राह बेमानी छले बिन सत्यता हर पोर अब । प्रेम जग में त्याग अर्पण एक दूजे में सधे, बाँधते रिश्ते न जाने कौन सी हो डोर अब । ——————-डॉ.प्रेमलता…

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    “विश्व खडा़ निस्पंद”

    गीतिका जली शलाका रात-दिन,मचे जहाँ नित द्वंद। कुटिल निरंकुश आग से,मत खेलें स्वच्छंद ।। विकट सदी की आपदा,हिला रही है चूल, ऐसी आँधी है चली, विश्व खडा़ निस्पंद ।। अंतस जलती आग से,मत बनिए अनजान, सुप्त नहीं ज्वालामुखी,मौत लिए यह खंद ।। दान भोग भव प्रीति से,मिट जायें सब भेद, बुनिए गुनिए आपसी, संयम लगे न फंद ।। प्रेम शक्ति ही सार है,गहिकर रखिए छोर, जीवन गति लय ताल में,बना रहे यह छंद।। —————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    “निज कर्म किया जाये”

    गीतिका —– आधार छंद- वा-द्विभक्ती (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- 221 1222, 221 1222 समान्त- आये, अपदान्त ————————————– उपकार इसी तन का हो मान अगर पाये । जीवंत सदा रहकर निज कर्म किया जाये । अरमान बडे़ मन में हो उच्च शिखर पाना, कर्तव्य करें बढ़कर पथ-ज्ञान सुधा साये । है ज्ञान बडा जग में सौभाग्य मिले प्रतिपल, संदेश सरस जिसका सम्मान न झुठलाये । संकल्प करें पूरा मत व्यर्थ समय करना, परमार्थ रहे जीवित मतभेद न अपनाये । हो प्रेम समय से यदि अभिसार करें उसका, लाचार हुआ तन-मन शृंगार नहीं भाये । ————— डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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