गजानन
#गजानन आओ मेरे द्वार ।
सुखद तुम मूषक सजे सवार ।
विराजो गौरी अंक गणेश,
तुम्हारी महिमा अपरम्पार ।
छंद – दिग्बधू ( मापनीयुक्त)
221 2122 221 212
गीतिका —-
अंतस विमल करो हे देवा नमन तुम्हें।
दे दो सदा रहे यों खुशियाँ सदन हमें ।
ममता लुटा रही माँ मलयज बयार सी,
स्वागत अँगन हमारे कर दो मगन हमें ।
चाहे न लेखनी यह आसन उधार अब,
हिंदी प्रखर बने दो रसना दसन हमें ।
मुक्ता लड़ी बनाऊँ आखर सँवार दूँ ,
चाहूँ न मौन व्रत अब करना सृजन हमें ।
बन प्रेम इन दृगों में मनमोर नाचता,
दो शारदीय आभा शोभित गगन हमें ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
19/303 इन्दिरा नगर लखनऊ उ. प्र.
पिन. 226016