दीप पर्व
आधार छंद – विधाता
गीतिका
1222 1222 1222 1222
समांत – आती, पदांत – है !
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गगन तारों भरा जैसे,धरा भी जगमगाती है ।
दिये की रोशनी जगमग,खुशी के गीत गाती है ।
अभावों के अँधेरे को,चलो मिलकर मिटायें हम,
लुटायें अंजुरी भरकर,मनुजता रंग लाती है
प्रकाशित यामिनी होती,तरंगित दीप्त लड़ियों से,
अँधेरा रह न पाये यों,निशा भी झिलमिलाती है ।
अमावस रात काली यह,सहज दीपक सजायें हम,
सपन नैना सजायें ये, हवा भी गुनगुनाती है ।
जलाओ प्रेम के दीपक,बहे मन नेह धारा में,
सजे मंगल कलश ज्योतित,यही शोभा लुभाती है ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी