मेघ मनुहार
गीतिका
सांवरे मनुहार करती अब चले आओ ।
घन घनाघन नाद लेकर बूँद बन गाओ ।
मीत मेरा मान रखना हे सलोने घन,
क्यों बहुत तरसा रहे हो मेह आ जाओ ।
तोड़ सीमा आज आतप क्यों बढ़ाते तन ।
कंठगत हैं प्राण प्यासे अब तरस खाओ ।
हम निहारें बाट तेरी प्यास है बढ़ती,
सावनी रिमझिम फुहारें प्राण सरसाओ ।
सूखते अब खेत जन धन है किसानी ठप,
शस्य श्यामल कर धरा पर प्रीति महकाओ ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी