
शब्दों की सार्थकता
विजयपर्व विजयादशमी की हार्दिक
बधाई शुभकामनाएँ ——–
शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए ।
घात अंतस तक करे जो, कि गंभीर हो जाए ।
तब तक उसे भी तोलिए, हिय सधे तराजू पर,
बहे कपोलों पर करुणा, सघन नीर हो जाए।
शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए ।
शब्दों की सार्थकता को, सिद्ध भाव ही करते।
व्रण का जो अवलेह बने, पीड़ा वे ही हरते।
निष्ठा को निष्ठुरता से, करिए कभी न छलनी,
हृदय समाती वाक्-सुधा, मधुर क्षीर हो जाए।
शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए ।
शब्द नहीं सेना आयुध, हार जीत का कारण।
अनघ शक्ति संबल भरते, भोर किरण के चारण।
अभय लगे वरदान सरिस, पंकिल तन हो पुलकित,
चकित भ्रमर मतिभ्रम डोले, मन अधीर हो जाए।
शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए ।
शब्द-अर्थ भावुकता के, सहित सरल मनोरंजक।
बाँटे सुख-दुख कष्ट हरे, मिथक लगे तन भंजक।
वचन बड़े अनमोल करें, आकुल मन को शीतल,
छद्म-रहित वाणी-सरसे, सुजन पीर हो जाए ।
शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए ।
—————————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
