
“उमड़ पड़े हिय ज्वार”
गीत
जल से है जलनिधि की गरिमा,हिम से है हिमवान ।
बूंद-बूंद से सागर जिसके, अगणित हैं उपमान ।
यत्न-रत्न से गर्भित-गर्वित,
उमड़ पड़े हिय ज्वार ।
चरण पखारे हिम शृंग के,
जोड़े अनुपम तार ।
लहरों पर नित चंद्र उतारे,शोभित उर्मिल प्राण ।
बूंद-बूंद से सागर जिसके,अगणित हैं उपमान ।
उठती गिरती फेनिल धारा,
वक्षस्थल को चीर ।
चतुर सयाने यात्रा करते,
गहरे खींच लकीर ।
स्वागत में यह विशाल सागर,भाव भरे उन्वान ।
बूंद-बूंद से सागर जिसके,अगणित हैं उपमान ।
विकल हुए संवेदित मन को ।
जहांँ मिलाती चाह ।
नदियों का संगम ही सागर,
सरितराज-उत्साह ।
लिखा करेंगी सदियों तक ये,प्रेम सरस सहगान ।
बूंद-बूंद से सागर जिसके, अगणित हैं उपमान ।
———————— डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

