“नेह की लेकर छुअन”
#गीत
वेदना संवेदना से क्षार हो जाए ।
दो नयन के धार से उपचार हो जाए ।
देह बाती की जली है नेह की लेकर छुअन ।
आ गया सावन सुहाए,प्यार की मीठी चुभन।
पाँव सँभले हैं नहीं झंकार हो जाए ।
दो नयन के धार से उपचार हो जाए ।
सेज काँटों की बिछी पर दूब दुलराए उठन ।
बूँद रिमझिम गा रही घन शाख पर गाए सुगन।
गूँज अनहद सावनी बौछार हो जाए ।
दो नयन के धार से उपचार हो जाए ।
पीर मन की बाँट कर बढ़ते रहेंगे हत थकन ।
आग पानी का समन्वय हो सकेगा ये जतन ।
तप्त पछुआ की हनक लाचार हो जाए ।
दो नयन के धार से उपचार हो जाए ।
भर गईं हों ताल नदियाँ सनसनाती हो उफन ।
भोर की लाली मनोहर साँझ की बेला मगन ।
चित्त निर्मल प्राण उन्मन उद्गार हो जाए ।
दो नयन के धार से उपचार हो जाए ।
भाव के सोपान जितने छल रही पुरवा पवन ।
ओढ़नी चंचल उड़ी जब लाज की लेकर तपन।
घन घनाघन व्योम में संचार हो जाए ।
दो नयन के धार से उपचार हो जाए ।
**************** डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
2122,2122,2122, 2 ( मापनी मुखड़ा)
2122,2122,2122, 212 (मापनी अंतरा)