“उन्नति करती राष्ट्र चेतना”
#गीत
सत्य-साधना-संकल्पों से, सदा रहें अनुरक्त ।
चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त ।
उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज ।
ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज।
राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त,
चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त ।
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राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, होगा तन उद्दाम ।
नगर-गाँव हो बहुविध उन्नत,सबको मिले मुकाम ।
मर्यादा शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त,
चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त ।
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कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान ।
साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान ।
महके समिधा जप-तप की क्यों,मन होता संतप्त,
चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त ।
*********************डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी