“लक्ष्य सही हो दिशा मिलेगी”
लक्ष्य सही हो दिशा मिलेगी,संस्कृति अपनी कहती ।
गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती ।
दूध-पूत से धरा नहाई, अब तक बीतीं सदियाँ,
संतों से अभिमंडित आश्रम,बलखातीं ये नदियाँ ।
कर्म प्रमुख है मनु जीवन में,संबल तुम हो धरती ।
————गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती ।
लिखित सभी हैं साक्ष्य आज भी,अवतारों की बातें ।
जीवन-यापन करने निश्चित,देव धरा पर आतें ।
ऊँच नीच की कलुष दाँव में,मिटती कंचन काया ,
थिर न रहे यह दंभ मान जो, मही हमारी डरती ।
————–गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती ।
कंचन होना पारस छूकर, कथन नहीं मन बाँधे ।
क्या खोया या पाया आकर, जीव उठा तन काँधे ।
क्षिति-जल-पावक-गगन-वात से,पंचतत्व मय जीवन,
फल फूलों से लदी डालियाँ, “लता” विनम्र हो झुकती ।
————-गंगाजल की शुचिता जिसमें,हरिगुन लेकर बहती ।
डॉ प्रेमलता त्रिपाठी