“सुंदर सुखद बसंत”
#गीत
हुई निनादित मौन अर्चना, हर्षित मन उद्गार ।
वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार ।
पृष्ठ-पृष्ठ पर अंकित कथनी,
करते हम जीवंत ।
आती-जाती ऋतुएँ कहतीं,
सुंदर सुखद बसंत ।
एकाकी मुस्कान भरे मन,आखर लगे बयार।
वनबाग उपवन ताल सगरे,हमने लिए उधार।
विरह-मिलन की त्रिगुण भाव की,
उद्यम करते काव्य ।
सरल नहीं है इन्हें साधना,
श्रम करता संभाव्य ।
साक्षी हैं वाणी के साधक ,कलम करे अभिसार ।
वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार।
श्रद्धानत करते चरित्र जो,
कलम लिखे जयबोल ।
लिख जाते अध्याय जहाँ,
घर आँगन भूगोल ।
मन की गागर सागर बनकर,’लता’ बढ़े सितधार ।
वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार।
—————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी