“कहाँ संँजोये जोगन”
#गीत
अरी बावरी पथ में बैठी,अपलक किसे निहारे ।
पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे ।
रीत रही मन की गागर ये,मधुशाला जीवन की,
खोज रहा हिय सार जगत में,बीते अपने पन की
उन बिन ये शृंगार सखी जी,सूना सावन-भादौ,
विरह प्रीति अनजान पथिक से,कोर भिगोते खारे ।
पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे ।
घन घननाद करे उन्मादी,नदिया बहती धारा ।
छलतीं हिय में कोरी बतियाँ,दिन में देखूँ तारा ।
सखी लुभाये चंद्र चकोरी,किस्से इनके अनगिन,
मिलन विरह की पीर निगोड़ी,अपनों से ही हारे।
पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे ।
लता प्रेम की सींच रहे ये,धीर नयन के अंजन।
दाँव पेंच सब लाज धरम को,कहाँ संँजोये जोगन।
विकल हुए अनुरागी चित को,दे दो अपनी चाहत,
वेग चले धड़कन अंतस को,अनल वात सम जारे
पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे ।
——————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी