केसर
#गीत
पथरीले पर्णल पर पगली,
परवश सोई प्राण पियारी ।
खिली कली ज्यों धूप सुहावन,
हुई यौवना केसर क्यारी ।
पलके खोले तो बस देखे,
लाज भरी बाँकी चितवन से ।
जीवट जड़वत रही जोगिनी,
सहमे दृग केवल विपणन से ।
क्षुब्ध तापसी कुटिल काम से,झेल रही अनगिन दुश्वारी ।
खिली कली ज्यों धूप सुहावन,हुई यौवना केसर क्यारी ।
————–हुई यौवना केसर क्यारी ।
कशमीरी परिचय दुनियावी ,
कौन हृदय की पीड़ा जाँचें ।
महक उठे निष्कंटक पथ पर,
शुचित हृदय में सबको राँचे ।
ध्वस्त हुई किंजल्क कल्पना,कलझे क्यों कमनीय कुँआरी ।
खिली कली ज्यों धूप सुहावन,हुई यौवना केसर क्यारी ।
————–हुई यौवना केसर क्यारी ।
बीते पल अध्याय जैविकी,
नैतिकता के ओढ़ आवरण।
भारत की पहचान कराती,
संस्कृति औ संघर्ष आचरण।
कुसुमित डाली सुरभि सर्जना व्यथित ‘लता’ केसर अविकारी
खिली कली ज्यों धूप सुहावन, हुई यौवना केसर क्यारी ।
————–हुई यौवना केसर क्यारी ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी