“गीत हुए महुआरी”
#गीत
चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी ।
खड़ी दुपहरिया मन भरमावे,पनघट घट पनिहारी ।
काँधे घड़िला शीश दुशाला,
डगर मगर कटि बाला ।
राह निहारे प्यारी गइया,
भामिनि हाथ निवाला ।
लाज लसे लोचनि रति हौले,झांझर पग झनकारी ।
चैत चली पछुआ अँगनाई, गीत हुए महुआर—–
रैन दिवस घड़ि पहर न जाने,
यौवन भरता पानी ।
नाचत झुमका लोल कपोलन।
रीझत भोर सुहानी ।
तरुवर छइयाँ ले अँगड़ाई, मुखरित प्राण पियारी
चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी —-
बाबुल पाती भेज बुलावें
सुधि ले महुआ महके ।
कनक मंजरी भर अमराई ,
कुहुक भरे तरु चहके ।
अगन लगावै वैशाख सखी,चलत पवन अगियारी ।
चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी —-
——————-_-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी