हवा फागुनी चंचल
#गीत
बंधन नेहिल रेशम के, उस डोरी का क्या कहना ।
जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना ।
नित पलकों के झूले में,
सतरंगी यादें गातीं ।
मगन घूमती परियों सी
निज श्वेतांबर फहरातीं ।
घन चैती फलक बिछाए, उस गोरी का क्या कहना।
जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना ।
मृदुल पाँखुरी प्रीत भरी,
ज्यों खुले कपास बिनौलें ।
मंत्र मुग्ध कर देते हैं,
मौज असीमित क्या तौलें ।
औ हवा फागुनी चंचल, मति भोरी का क्या कहना ।
जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना ।
करती है प्रीत निछावर,
पुलक उठी वसुधा धानी ।
सरसों पियरी पहने ज्यों –
तन भरे यौवना पानी ।
खेल रही जनु बासंती, अब होरी का क्या कहना ।
जो ले जाती सपनों में, उस लोरी का क्या कहना ।
——————–डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी