“खोल झरोखे मावस चंदा”
#गीत
दिवा सजे हवि महक उठी पिय,संग शिखा पुरवाई।
झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई ।
खोल झरोखे मावस चंदा,
तमस लिए तन बागी ।
धरा गगन की साँठ-गाँठ में,
मन का होना रागी ।
बैठ पुलिन पर करे प्रतीक्षा, कैसे वह हरजाई ।
झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई ।
इत आये उत जाए छलिया,
आकुल मन मतवाला ।
गिन-गिन कर जो रात गुजारे
जपकर मुक्ता माला ।
बंद साँकली खोले पूनम, निशा लगी गदराई ।
झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई ।
नयन थके वा लगी विछावन,
पलक पाँवड़े अभिनव ।
नेह #लता जो छूट न पाये,
सुर सजा शर्वरी रव ।
दमकी देहरि घर आँगन की,कली गली मुस्काई ।
झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई ।
—————डॉ प्रेमलता त्रिपाठी
शर्वरी = (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सूर्यास्त और सूर्योदय के मध्य का समय; संध्याकाल; सायं काल 2. निशा; रात; रात्रि; रजनी !!!!