
#दीपोत्सव विशेष ….
दीपोत्सव #विशेष
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जन्मभूमि भारत यह जिससे, अपना मधुमय नाता है।
पर्वों का यह देश निराला, गीत मिलन के गाता है।।
जहाँ अमावस को पूनम सम, जगमग दीप जलाते हम।
लिखते हैं निस्वार्थ भाव से, निज सत्य बहीखाता है।।
ढुल-मुल नीति वही ढोता है, भार रूप है जीवन को।
अपनी जड़ता के कारण, व्यर्थ रीति दुहराता है।।
सदा संतुलन संदेश रहा, स्वयं सँवारे नियति नियम।
रवि ज्यों देता सजग चेतना, नाते मौन निभाता है।।
भूख गरीबी या मंदी हो, चिंतन से बदलेगें हम।
दीप ज्योति से विकट अँधेरा, उसे मिटाना आता है।।
नयी योजना उम्मीदों से, भारत सुदृढ़ बनाने को।
पहल सदा हम स्वयं करेंगे, यही वक्त सिखलाता है।।
दीप-दिवाली देव-भूमि पर, आती है हर वर्ष जहाँ।
प्रेम-पर्व मिल संग मने जब, सबको गले लगाता है।।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
