
“हाथ मले क्यों रिक्त”
#गीत
दूर करें हम सभी रिक्तियाँ, दृढ़मति कर विश्वास।
मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस।
भरा हुआ या खाली आधा,
अपनी अपनी दृष्टि।
ऊसर-बंजर भरें निराशा,
भर देती तब वृष्टि।
सजग कर्म-पथ करना होगा, नित्य नवल विन्यास।
मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस।
समय नहीं रुकता है नियमित,
नियति साधना सिक्त।
खो देते हैं अवसर कितने,
हाथ मले क्यों रिक्त।
श्रम-सीकर को बहना होगा, कर्मठ तजें विलास।
मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस।
मनुज-मनुजता से अनुबंधित,
प्रेम झरोखे खोल।
धैर्य-धर्म से कटे आपदा,
जीवन है अनमोल।
पुण्य प्रसून सँवरना होगा, मत कर उसे उदास।
मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस।
———————डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
