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#दीपोत्सव विशेष ….
दीपोत्सव #विशेष ———————- जन्मभूमि भारत यह जिससे, अपना मधुमय नाता है। पर्वों का यह देश निराला, गीत मिलन के गाता है।। जहाँ अमावस को पूनम सम, जगमग दीप जलाते हम। लिखते हैं निस्वार्थ भाव से, निज सत्य बहीखाता है।। ढुल-मुल नीति वही ढोता है, भार रूप है जीवन को। अपनी जड़ता के कारण, व्यर्थ रीति दुहराता है।। सदा संतुलन संदेश रहा, स्वयं सँवारे नियति नियम। रवि ज्यों देता सजग चेतना, नाते मौन निभाता है।। भूख गरीबी या मंदी हो, चिंतन से बदलेगें हम। दीप ज्योति से विकट अँधेरा, उसे मिटाना आता है।। नयी योजना उम्मीदों से, भारत सुदृढ़ बनाने को। पहल सदा हम स्वयं करेंगे, यही वक्त सिखलाता है।। दीप-दिवाली…
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“हाथ मले क्यों रिक्त”
#गीत दूर करें हम सभी रिक्तियाँ, दृढ़मति कर विश्वास। मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस। भरा हुआ या खाली आधा, अपनी अपनी दृष्टि। ऊसर-बंजर भरें निराशा, भर देती तब वृष्टि। सजग कर्म-पथ करना होगा, नित्य नवल विन्यास। मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस। समय नहीं रुकता है नियमित, नियति साधना सिक्त। खो देते हैं अवसर कितने, हाथ मले क्यों रिक्त। श्रम-सीकर को बहना होगा, कर्मठ तजें विलास। मन के मनके की माला में, पिरो दिया यदि आस। मनुज-मनुजता से अनुबंधित, प्रेम झरोखे खोल। धैर्य-धर्म से कटे आपदा, जीवन है अनमोल। पुण्य प्रसून सँवरना होगा, मत कर उसे उदास। मन के मनके की…
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अंबर का शृंगार तुम्हीं से, श्वेत स्वच्छ अकलंक।
#गीत रंग भरे सपनों की कलशी, सजी तारिका नेक, ध्रुवक साधना छंद सृजन के,भाव भरे अतिरेक। धवल चँद्रिका पूर्ण चंद्र की, अनुपम रूप मयंक, अंबर का शृंगार तुम्हीं से, श्वेत स्वच्छ अकलंक। अनुपम रूप मयंक………. बिछा रही वह पलक पाँवड़े, देखे बारंबार, थाल सजाए ज्योतित; रमणी, देती अर्घ्य-उतार। दर्शन दुर्लभ तीज-चौथ के, साधक उत्कट बंक, उदित हुआ नीलाभ यथावत,पंकज खिलता पंक। अनुपम रूप मयंक………. झरे बूँद रिमझिम तुषार के, सुखदा कांति विशेष, अमिय कमंडल लेकर आये, मिटी तृषा अनिमेष। शुभ्र वेश उन्मेष देखकर, चातक लगे सशंक, गर्वित होती उर्मिल लहरे, लेकर तुमको अंक। अनुपम रूप मयंक………. साज सरस से छेड़ रागिनी, रीझे शारद विज्ञ, जगा रही ज्यों अलख ज्योत्स्ना,अनुरागी अनभिज्ञ।…
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शब्दों की सार्थकता
विजयपर्व विजयादशमी की हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ ——– शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए । घात अंतस तक करे जो, कि गंभीर हो जाए । तब तक उसे भी तोलिए, हिय सधे तराजू पर, बहे कपोलों पर करुणा, सघन नीर हो जाए। शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए । शब्दों की सार्थकता को, सिद्ध भाव ही करते। व्रण का जो अवलेह बने, पीड़ा वे ही हरते। निष्ठा को निष्ठुरता से, करिए कभी न छलनी, हृदय समाती वाक्-सुधा, मधुर क्षीर हो जाए। शब्द को ऐसे न छोड़ें, कि वह तीर हो जाए । शब्द नहीं सेना आयुध, हार जीत का कारण। अनघ शक्ति संबल…










