
“द्वार सजाऊँ बंदनवारे”
#गीत
शंकर सुवन गणपति आओ,रिद्धि-सिद्धि सह अनुगामी।
द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी।
नाद-ताल लय साज सधेंगे।
वंदन के स्वर चौमासी ।।
अधर-अधर पर जय जयकारा।
अंखियांँ कातर नित प्यासी ।।
दीन करें मन आर्त्तनाद सुन,नष्ट करो!विपदा कामी।
द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी।।
अलि गुन गाए सरस करे प्रिय।
मधुरस कलश भरें कलियाँ ।।
पीत-वसन ले ध्वजा नारियल।
मंदिर तक गातीं सखियांँ ।।
गजवदन विनायक की प्रतिमा,
पथ पर निकले रथ यात्रा, दर्शन को बढ़े सुनामी।
द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी।।
#लता पहन वासंती चूनर,
अंग-अंग थिरके नच के ।
गीत लावणी सहज ऋचाएं,
मन भाए कटितट मटके।
पहन पीत पट प्रभु गजवदना,शुभकारी अन्तर्यामी ।
द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी।।
————– डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
