-
“दुहराता इतिहास उसी को”
*सजल* समय-समय पर बरखा सावन,और समय से आता पतझड़। नियति बांँचती भाग्य हमारे,सुख-दुख आते हैं उमड़-घुमड़ ।। चूनर दाग न धो पाएगी, हृदय हीन हो रिश्ता-नाता। प्रीति लगन यदि सच है बढ़ती, भले बनाते लोग बतंगड़।। लोक रीति से परे न कोई, नयी-पुरानी सीख समझ लें। सत्य-सनातन बिन कड़ियांँ सब, बिना शीश के लगतीं धड़।। भूले बिसरे गीत हमारे, नयी चेतना को समझाएं। दुहराता इतिहास उसी को, धाक उसी की जो है धाकड़।। महके फागुन में अमराई, कोकिल-काग करें हैं कलरव। मीठी-मीठी वाणी मनहर, झूलें हम डाली पकड़-पकड़।। बादल छौने नभ पर धाएं, काले-भूरे रार मचाएं। गरज उठी घनघोर नाद से, चपला-चमकी नभपर तड़-तड़।। सांँझ सुरमई निशा सुहागन, चातक-नयन हुए…