• #गीत

    “द्वार सजाऊँ बंदनवारे”

    #गीत शंकर सुवन गणपति आओ,रिद्धि-सिद्धि सह अनुगामी। द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी। नाद-ताल लय साज सधेंगे। वंदन के स्वर चौमासी ।। अधर-अधर पर जय जयकारा। अंखियांँ कातर नित प्यासी ।। दीन करें मन आर्त्तनाद सुन,नष्ट करो!विपदा कामी। द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी।। अलि गुन गाए सरस करे प्रिय। मधुरस कलश भरें कलियाँ ।। पीत-वसन ले ध्वजा नारियल। मंदिर तक गातीं सखियांँ ।। गजवदन विनायक की प्रतिमा, पथ पर निकले रथ यात्रा, दर्शन को बढ़े सुनामी। द्वार सजाऊँ बंदनवारे, दीप प्रज्ज्वलित हो स्वामी।। #लता पहन वासंती चूनर, अंग-अंग थिरके नच के । गीत लावणी सहज ऋचाएं, मन भाए कटितट मटके। पहन पीत पट प्रभु गजवदना,शुभकारी अन्तर्यामी ।…

  • गीतिका

    “दुहराता इतिहास उसी को”

    *सजल* समय-समय पर बरखा सावन,और समय से आता पतझड़। नियति बांँचती भाग्य हमारे,सुख-दुख आते हैं उमड़-घुमड़ ।। चूनर दाग न धो पाएगी, हृदय हीन हो रिश्ता-नाता। प्रीति लगन यदि सच है बढ़ती, भले बनाते लोग बतंगड़।। लोक रीति से परे न कोई, नयी-पुरानी सीख समझ लें। सत्य-सनातन बिन कड़ियांँ सब, बिना शीश के लगतीं धड़।। भूले बिसरे गीत हमारे, नयी चेतना को समझाएं। दुहराता इतिहास उसी को, धाक उसी की जो है धाकड़।। महके फागुन में अमराई, कोकिल-काग करें हैं कलरव। मीठी-मीठी वाणी मनहर, झूलें हम डाली पकड़-पकड़।। बादल छौने नभ पर धाएं, काले-भूरे रार मचाएं। गरज उठी घनघोर नाद से, चपला-चमकी नभपर तड़-तड़।। सांँझ सुरमई निशा सुहागन, चातक-नयन हुए…

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