
सजल नयन के कोर……..
करो न आहत हृदय हमारा,कदम बढ़ाया अभी-अभी।
वही भरोसा बना रहेगा, कलम उठाया अभी-अभी ।
हुए नहीं जो खुद ही अपने, रिश्ते नाते नये-नये
उठीं सदाएं जगत हितों की,जिसे जगाया अभी-अभी ।
भले शिखर तक पहुँच गए हम,तृषा हवस की डुबा रही,
क्या खो चुके हम ये न सोचा, विवश बनाया अभी-अभी ।
बढ़ा हौसले वही गिराते,परख सके हैं कुटिल कहाँ,
रही सतत दुविधा लाचारी,विकल अनाया अभी-अभी ।
दाँव सियासी खेलें देखा, चौपड़ बाजी लगी यहाँ,
उठो राष्ट्र के लिए विवेकी, हृदय लजाया अभी-अभी।
उठा शीश हो विशेष अपना, चुन सके हम उचित राहें,
“सजल”नयन के कोर बताते,कि क्या गँवाया अभी-अभी।
भरे सुकर्मों से ये आँगन,लगे मान का पान सरस ही,
सजी वाटिका लता प्रेम से,यही लुभाया अभी-अभी ।
————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
अनाया = “देखभाल करने वाला”, “दयालु”, या “सुरक्षा
